Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
७७८
यदि रोगी को अपनी छाया का (हस्तपादाग्रहीना वा) हाथ, पाँवों के अग्र ही न दिखे तो (त्रिपक्षं साद्धमासकम्) तीन पक्ष की आयु समझनी चाहिये (अग्निस्फुलिङ्गान् मुचन्ति) और अग्नि स्फुलिंगों को उगलती हुई दिखलाई पड़े तो (लघु मृत्युं समादिशेत्) शीघ्र ही मरण होने वाला है ऐसा कहे।
भावार्थ-यदि रोगी को अपनी छाया का हाथ पाँव का अग्र भागहीन देखे तो तीन पक्ष की आयु समझनी चाहिये, अर्थात् डेढ़ महीने की आयु समझो यदि वही छाया अग्नि स्फुलिंगों को छोड़ती हुई दिखाई पड़े तो समझ लो उसका शीघ्रमरण हो जाने वाला है।। ६५ ।।
रक्तमज्जाञ्च मुञ्चन्ती पूतितैलं तथा जलम्।
एकद्वित्रिदिनान्येव दिनार्द्ध दिनपञ्चकम्॥६६॥ (रक्तमज्जाञ्च) रक्त, मज्जा (पत्तितैलं तथा जलम्) चर्बी, तेल, जल आदि (मुञ्चन्ती) छोड़ती हुई छाया दिखे तो (एकद्वित्रिदिनान्येव) एक, दो, तीन, व (दिनाई दिनपञ्चकम्) आधा दिन तथा पाँच दिन की आयु समझो।
भावार्थ-रक्त, मज्जा, चर्बी, तैल, जलादि छोड़ती हुई रोगी की छाया दिखे तो क्रमश: एक दिन, दो दिन, तीन दिन तथा आधा दिन या पाँच दिन की आयु समझो इससे ज्यादा नहीं जीवेगा ।। ६६ ।।
परछायाविशेषोऽयं निर्दिष्टः पूर्वसूरिभिः।
निजच्छायाफलं चोक्तं सर्वं बोद्धव्यमत्र च॥६७॥ (पूर्वसूरिभिः) पूर्वाचार्यो ने (पर छायाविशेषोऽयं निर्दिष्ट:) पर छाया का विशेष वर्णन किया (सर्वं बोद्धव्यमन्न च) अब यहाँ पर जानना चाहिये कि मैं (निजच्छायाफलं चोकर) निज की छाया का फल कहता हूँ।
भावार्थ-यहाँ पर पूर्वाचार्यनुसार पर की छाया का फल मैंने कहा अब विशेष रीति से मैं स्वयं की छाया का फल कहूँगा ।। ६७ ।।
उक्ता निजपरच्छाया शास्त्रदृष्ट्या समासतः । इतः परं ब्रूवे छायापुरुष लोकसम्मतम् ।। ६८॥