Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाध्याय:
भावार्थ-इस प्रकार अपने सर्वाङ्ग को मन्त्रित करके मंत्रवादी अपनी श्रेष्ठ छाया को देखे, शुभदिन शुभवार में बादलों से रहित पवन से रहित और पानी, तुष अंगार, चर्म से रहित और इतर छाया से रहित तीन शुद्धि पूर्वक देखे भूमि पर यह छाया अपनी स्वयं की स्वयं देखे, यह छायांपुरुष अवलोकन कार्य है।। ४९-५०॥
न पश्यति आतुरच्छायां मिजाध संस्थितः।
दशदिनान्तरं याति धर्मराजस्य मन्दिरम्॥५१॥
जो रोगी (निजां) अपनी (आतुरच्छायां तत्रैव संस्थित: न पश्यति) आतुर छायां को स्थित होकर नहीं देखता है वह (दशदिनान्तरं) दस दिन के बाद (धर्मराजस्य मन्दिरम् याति) धर्मराज के मंदिर को जाता है।
भावार्थ-जो रोगी अपनी छाया को स्थित होकर नहीं देखता है वो दस दिनों में यम मन्दिर को पहुंच जाता है॥५१॥ ।
अधोमुखीं निजच्छायां छायायुग्मञ्च पश्यति ।
दिनद्वञ्च तस्यायुर्भाषितं मुनिपुङ्गवैः ॥५२ ।। (निजच्छायां अधोमुखीं) अपनी छाया को अधोमुखी देखे और (युग्मञ्चछायायश्यति) दो हिस्सों में बढ़ी हुई देखे तो (तस्यायुदिनद्वयञ्च) उसकी आयु दो दिन (मुनिपुङ्ग वैर्भाषितं) मुनियों एवं श्रेष्ठ पुरुषों ने कहा है।
भावार्थ-अपनी छाया को अधोमुखी देखे तथा दो हिस्सों में देखे तो उसकी आयु दो दिन की मुनि श्रेष्ठों ने कही है ।। ५२ ।।
मन्त्री न पश्यति छाया मातुरस्यनिमित्तिजाम्।
सम्यक् निरीक्ष्यमाणोऽपि दिनमेकं स जीवाते।। ५३।। (सम्यक् निरीक्ष्यमाणोऽपि) सम्यक्प निरीक्षण करने पर भी (मन्त्री नपश्यति छाया) मन्त्री अपनी छाया को नहीं देखता है (मातुरस्यनिमित्तिजाम) तो वह (दिनमेकं सजीवति) एक दिन जिन्दा रहता है।
भावार्थ-जो सम्यक् रूप से निरीक्षण करने पर भी अपनी छाया को मंत्री नहीं देखता है तो वह एक दिन में ही मर जाता है अर्थात् उसका जीवन एक दिन का समझना चाहिए ।। ५३॥