Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
मुद्गरबलच्छुरिका नाराचखड्गादि शस्त्रघातेन।
चूणीकृतानेजबिम्बं पश्यति दिनसप्तकं चायुः॥५७॥
जो कोई रोगी (निजबिम्ब) अपनी छाया को (मुद्र सबलच्छुरिका, नाराच) मुद्र, छुरी, बी, भाला (खड्गादि शस्त्रघातेन) तलवार आदि शस्त्र के घात से (चूर्णी कृत पश्यति) चूर्ण करता हुआ देखे तो (दिनसप्तकं चायु:) सात दिन की आयु समझो।
भावार्थ-जो कोई रोगी अपनी छाया को मुद्गर, सबल, छुरी, बी, भाला, बाण आदि से चूर्ण किया गया देखे तो उसकी आयु सात दिन की मात्र रह गई है॥५७।।
निजच्छाया तथा प्रोक्तापरच्छायापि तादृशी।
विशेषोऽप्युच्यते कश्चिद्यो दृष्टः शास्त्रवेदिभिः ।। ५८॥ इस प्रकार (निजच्छाया) अपनी छाया का (तथा) तथा (परच्छायापि तादृशी प्रोक्ता) परच्छाया का फल कहा उसका भी फल वैसा ही है (विशेषोऽप्युच्यते) विशेष यहाँ पर (कश्चिद्यो दृष्ट: शास्त्र वेदिभिः) किसी शास्त्र के जानकारों ने विशेष वर्णन यहाँ किया है उसको कहूँगा।
भावार्थ--इस प्रकार अपनी छाया को व पर की छाया को व उसको फलादेश को मैने कहा अब मैं उसकी विशेषताएँ कहूँगा ।। ५८।।।
रूपी तरुणः पुरुषो न्यूनाधिकमानवर्जितो नूनम् ।
प्रक्षालित सर्वाङ्गो विलिप्यते स्वेन गन्धेन ॥ ५९॥ (रूपी तरूण: पुरुषो) रूपवान युवक पुरुष (न्यूनाधिकमान वर्जितो नूनम्) जो की न ज्यादा लम्बा हो न ज्यादा नाटा हो उसको (प्रक्षालित सर्वाङ्गो) स्नान कराकर (स्वेन गन्धेन विलिप्यते) स्वयं को सुगन्धित गन्ध से विलिप्त करे।
भावार्थ-रूपवान युवक को स्नान कराकर स्वयं को सुगन्धित गन्ध से लेपित करे ।। ५९॥