Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
रक्तमारला तथा माला रक्तं वा सूत्र मेव च।
यास्मिन्नेवाव वध्येत् तदनेन विक्लिश्यति॥६६॥ स्वप्न में जिस अंग को (रक्तमाला तथा माला रक्तवासूत्रमेव च) लाल माला, मात्र माला अथवा लाल डोरे से (यास्मिन्नेवाववध्येत) बांधा हुआ दिखे या बांधे तो (तदनेनविक्तिश्यति) उसी अंग से नाश को प्राप्त होगा।
भावार्थ-स्वप्न में जो मनुष्य अपने अंगों को लाल माला तथा मात्र माला या लाल डोरे से बांधे तो उस अंग में कोई रोग उत्पन्न होगा और उस मनुष्य का अवश्य मरण होगा 11 ६६॥
ग्राहो नरो नगं कशित् यदा स्वप्ने च कर्षति।
बद्धस्य मोक्षमाचष्टे मुक्तिं बद्धस्य निर्दिशेत् ॥६॥ (यदा स्वप्ने) जब स्वप्न में (नरो) मनुष्य को (ग्राहो नगं कञ्चित्) मकर या घड़ियाल (कर्षति) खींचता हुआ दिखे तो (बद्धस्य मोक्षमाचष्टे) बंधन पड़ा हुआ व्यक्ति छुट जाता है (बध्दस्य मुक्ति निर्दिशेत्) अथवा मुकदमें में बंधे हुए व्यक्ति की जीत होती है।
भावार्थ-जब स्वप्न में मनुष्य को मकर या घड़ियाल पकड़ कर खींचे तो समझो उसकी कारागार से छुट्टी हो जाती है और मुकदमें में भी जीत होती है॥६७||
पीतं पुष्पं फलं यस्मै रक्तं वा संप्रदीयते।
कृता कृतं सुवर्णं वा तस्य लाभो न संशयः॥६८॥ स्वप्न में यदि (यस्मै) जिसको भी (पीतं पुष्पं फलं रक्त वा संप्रदीयते) पीले या लाल फल पुष्प देते हुए दिखाई पड़े तो (कृता कृतं सुवर्णं वा) सोना, चांदी का (तस्य) उसको (लाभो न संशयः) लाभ होता है इसमें संदेह नहीं है।
भावार्थ स्वप्न में यदि जिसको भी पीला पुष्प फल या लाल फल पुष्प देते हुए देखे उसको सोना चांदी का लाभ होगा इस संदेह नहीं है॥६८॥
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