Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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और निद्रा का नाश हो जाय तथा निरंतर सोता रहे तो उसकी आयु चार महीने की है।। २७॥
इत्यवोचमरिष्टानि पिण्डस्थानि समासतः ।
इतः परं प्रवक्ष्यामि पदार्थस्थान्यनुक्रमात् ॥२८॥ (इत्यवोचमरिष्टानि) इस प्रकार के अरिष्टों को (पिण्डस्थानि समासतः) पिण्डस्थ अरिष्ठ कहते हैं (इतः परंप्रवक्ष्यामि) अब मैं पदस्थ अरिष्टों को क्रमश: कहता हूँ, (पदार्थ स्थान्यनुक्रमात्) पदस्थ अरिष्टों को पिण्डस्थ अरिष्ट कहते हैं।
भावार्थ-इस प्रकार के अरिष्टों को पिण्डस्थ अरिष्ट कहते हैं अब मैं पदस्थ अरिष्टों को क्रमश: कहता हूँ॥२८॥
चन्द्रसूर्यप्रदीपादीन् वैपरीत्येन पश्यति।
पदार्थस्थमरिष्टं तत्कथयन्ति मनीषिणः ॥२९॥ (चन्द्रसूर्यप्रदीपादीन्) चन्द्र सूर्य दीपक आदि (वैपरीत्येन पश्यति) विपरीत रुप से दिखे तो (पदर्थस्थमरिष्टं) उस पदार्थ को अरिष्ट (मनीषिण: तत्कथयन्ति) बुद्धिमान लोग कहते हैं।
भावार्थ-चन्द्र, सूर्य दीपक आदि विपरीत रुप से दिखे तो बुद्धिमान पुरुष उस पदार्थ को अरिष्ट कहते हैं।। २९ ।।
स्नात्वा देहमलंकृत्य गन्थमाल्यादिभूषणैः ।
शूभ्रस्ततो जिनं पूज्य चेदं मन्त्रं पठेत् सुधीः ॥ ३०॥ (स्नात्वा) स्नान कर (देहमलंकृत्य) देह के मल को दूर करे, फिर (गंधमाल्यादि भूषणैः) गंध मालादिक भूषण पहने (शूभैः) सफेद वस्त्र पहने (ततोजिनंपूज्य) उसके बाद जिनेन्द्र पूजा करके (चेदं मन्त्रं पठेत् सुधी:) फिर बुद्धिमान मंत्र को पढे।
भावार्थ-स्नान कर अपने को सफेद वस्त्र व गंध माल्यादि भूषणों से सजावे फिर जिनेन्द्र भगवान की पूजा करे, और मंत्र का जाप प्रारभं करे ।। ३० ॥
एक विंशति वेलाभि:पठित्वा मन्त्रमुत्तमम्। गुरूपदेशमाश्रित्य ततोऽरिष्टं निरीक्षयेत्॥३१॥