Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ-जो कोई रोगी चन्द्र एवं सूर्य बिम्ब को प्रज्वलित देखे और धूम सहित देखे वा रुधिर सहित आकाश में देख तो उसकी आयु छह दिन की है॥ ३७ ।।
वाणैर्भिन्नमिवालीढं बिम्बं कालरेखया।
यो वा पश्यति खण्डानि षण्मासं तस्य जीवितम्।। ३८॥ जो कोई सूर्य एवं चन्द्र (बिम्बं) बिम्ब को (वाणौर्भिन्नमिवालीढं) बाणों से एवं छिन्नभिन्न देखे एवं (कञ्चलरेखया) काजल की रेखा देखे और (वा यो खण्डानिपश्यति) उसके टुकडे-टकडे दिखे तो (तस्यषण्मासं जीवितम्) उसकी आयु छह महीने की समझो।
भावार्थ-जो रोगी चन्द्र या सूर्य बिम्ब को वाणों से छिदा हुआ देखे और काली रेखा दिखे तथा उसके टुकड़े-टुकड़े दिखे तो समझो उसकी आयु छह महीने की समझो॥ ३८॥
रात्रौ दिनं दिने रात्रिं यः पश्येदातुरस्तथा।
शीतला वा शिखां दीपे शीघ्रं मृत्युं समादिशेत् ।। ३९ ।। (य:) जो रोगी, (रात्रीदिनंदिनरात्रि) रात में दिन को .वं दिन में रात्रि को (पश्यदातुरस्तथा) आतुर होकर देखे तथा (शीतलावाशिखांदीपे) दीप शिखा को शीतल अनुभव करता है तो (शीघ्रंमृत्युसमादिशेत) उसकी शीघ्र मृत्यु हो जाती
भावार्थ-जो रोगी रात में दिन का एवं दिन में रात्रि का अतुर होकर अनुभव करे तथा दीप शिखा को शीतल अनुभव करे तो उसकी मृत्यु शीघ्र हो जाती है।। ३९॥
तन्दुलैर्मियते यस्याञ्चलिस्तेषां भक्तं ज पच्यते।
जहीत्यधिकं तदा चूर्ण भक्तं स्याल्लधुमृत्युदयम्।। ४० ।। (यस्याञ्जलितन्दुलै) रोगी अञ्जुलीभर कर चांवल को (स्तेषां भक्तं चपश्यते) पकावे उस भात को (जहीत्यधिकं) फिर उसकी अंगुली में भरे तब अगर कम या ज्यादा हो तो वह (म्रियते) शीघ्र मरेगा और उसी प्रकार (चणं भक्तंस्याल) किसी का चूर्ण को रोगी के अंजुली प्रमाण पकावे और वह ज्यादा कम हो जावे तो समझो (लघुमृत्युदयम्) उसकी मृत्यु शीघ्र होगी।