Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
(उत्तमम्) उत्तम (मन्त्र) मन्त्र को (एकविंशतिवेलाभिः) इक्कीस बार (पठित्वा) पढ़कर (गुरुपदेशमाश्रित्य) गुरुपदेश का आश्रय लेकर (ततोऽरिष्टंनिरीक्षयेत्) उस अरिष्ट का निरीक्षण करे।
__ भावार्थ-उत्तम मंत्र को इक्कीस बार पढकर गुरुपदेश का आश्रय लेकर उन अरिष्टों का निरीक्षण करे ।। ३१॥
चन्द्रभास्करयोर्बिम्ब नानारूपेण पश्यति।
सच्छिद्रं यदि वा खण्डं तस्यायुर्वर्षमात्रतः ॥ ३२॥ (चन्द्रभास्करयोर्बिम्बं) चन्द और सूर्य बिंब है (नानारूपेणपश्यति) वह नाना रुप में दिखे तथा (सच्छिद्र यदि बा खण्ड) छिद्र सहित वह खड खंड रुप दिखे तो (तस्यायुर्वर्षमात्रत:) उसकी आयु एक वर्ष मात्र रह जाती है।
भावार्थ-चन्द्र और सूर्य का बिंब नाना रुप में दिखे तथा छिद्र सहित एवं खंड-खंड रुप दिखे तो उसकी आयु एक वर्ष मात्र रह जाती है। ३२ ।।
दीपशिखां बहुरूपां हिमदव दग्धां यथादिशां सर्वाम् ।
यः पश्यति रोगस्थो लघुमरणं तस्य निर्दिष्टम् ।। ३३॥ (दीपशिखां बहुरूपां) दीप की शिखा बहुरुप वाली दिखे तथा (यथादिशा सर्वाङ्गम्) सब दिशों की सब तरफ से (हिमदवदग्धां) हिम के समान जलती हुई (य:) जो (रोगस्थो) रोगी (पश्यति) देखता है (तस्यलघुमरणंनिर्दिष्टम्) उस रोगी का शीघ्र ही मरण कहा गया है।
भावार्थ-जो रोगी दीप शिखा को बहुत रुप में देखता है और सब दिशा हिम के समान जलती हुई दिखे तो उस रोगी का शीघ्र मरण हो जायगा ऐसा कहा गया है॥३३॥
बहुच्छिद्रान्वितं बिम्बं सूर्य चन्द्रमसोर्भुवि ।
पतन्निरीक्ष्यते यस्तु तस्यायुर्दशवासरम् ॥ ३४ ॥ (यस्तु) जो (बहुच्छिद्रान्वितं) बहुताच्छिद्रों से युक्त (सूर्य चन्द्रमसो(विबिम्ब) सूर्य और चन्द्रमा के बिम्ब को जमीन पर (पतानिरीक्षतो) गिरता हुआ देखता है (तस्यायुर्दशवासरम्) उसकी आयु दश दिन की है।