Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
सप्तविंशतितमोऽध्यायः
नवीन वस्त्र धारण यदा स्थितौ जीवबुधौ ससूर्या राशिस्थितानाञ्च तथानुवर्तिनौ ।
नृनागबद्धावरसङ्गरस्तदा भवन्ति, वाता; समुपस्थितान्ताः॥१॥ (यदा) जब (जीव बुधौ ससूर्यो) गुरु और बुध सूर्य के साथ (स्थितौ) स्थित होकर (राशिस्थितानाञ्च तथानुवर्तिनौ) स्व राशियों में स्थित ग्रहोंके साथ हो तो समय में (नृनाग बद्धावरसगरस्तदा) मनुष्य, नाग तथा अन्य छोटे जीव युद्ध करते दिखलाई पड़े (तदा) तो (वाता: समुपस्थितान्ता: भवन्ति) भयंकर वायुका तूफान चलता है।
भावार्थ-जब गुरु और बुध सूर्य के साथ स्थित होकर स्व राशियोंमें स्थित ग्रहों के गाथ हो उसी समय पशष्य. नाग व अन्य छोटे जीव यदि युद्ध करने लगे तो समझो भयंकर वायु चलेगी, और तूफान चलेगा ||१॥
न मित्रभावे सुहृदो समेता न चाल्पतयमम्बु ददाति वासवः ।
भिनत्ति वज्रेण तदा शिरांसि महीभृतां चाप्यपवर्षणं च ।। २ ।। (न मित्रभावे सुहृदो समेता) यदि शुभ ग्रह भित्र भाव में स्थित नहीं हो तो (न चाल्पतयमम्बु ददाति वासवः) समझो वर्षा का अभाव रहेगा, (भिनत्ति वज्रेण तदा शिरांसि) और इन्द्र वज्र से पर्वतों का शिर चूर-चूर करेगा, (महीभृतां चाप्यपवर्षणं च) पर्वतों पर विद्युत्पात होता रहेगा, वर्षा का पूर्ण अभाव रहेगा।
भावार्थ---जब शुभ भाव से ग्रह स्थित नहीं होते तब वर्षा का पूर्ण अभाव रहेगा पर्वतों का मस्तक वज्र से इन्द्र चूर-चूर करेगा, और वर्षा थोड़ी भी नहीं होगी ।। २ ।।
सोमनहे निवृत्तेषु पक्षान्ते चेद् भवेद्ग्रहः ।
तत्रानयः प्रजानां च दम्पत्योर्वैरमादिशेत् ।।३।। (सोमग्रहे निवृत्तेषु) चन्द्रमा की निवृत्ति होने पर (पक्षान्ते चेद् भवेत्ग्रहः) पक्ष