Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाध्यायः
अरिष्टों का वर्णन
यह अध्याय कालज्ञान जानकर समाधिमरण करने के लिए है।
अथ वक्ष्यामि केषाञ्चित्रिमित्तानां प्ररूपणम्।
कालज्ञानादि भेदेन यदुक्तं पूर्व सूरिभिः ।।१॥ (अथवक्ष्यामिकषाञ्चिन्) अब मैं कुछ (निमित्तानां प्ररुपणम्) निमित्तों का प्ररूपण कहूंगा जी (कालज्ञानादिभदेन) काल ज्ञानादिक प्ररुपण किया गया है (यदुक्तंपूर्वसूरिभिः) एवं जैसा पूर्वाचार्यों ने कहा है।
भावार्थ-अब में कुछ निमित्तों को कहूँगा जो काल ज्ञानादिक के भेद से पूर्वाचार्यों ने कहा है॥१॥
श्रीमद्वीरजिनं नत्वा भारतीच पुलिन्दिनीम्।
स्मृत्वा निमित्तानी वक्ष्ये स्वात्मनः कार्यसिद्धये॥२॥ (श्रीमद्वीरजिनंनत्वा) श्री मद्वीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके (भारतीञ्च पुलिन्दिनीम्) सरस्वती का स्मरणक निमित्तों की अधिष्ठाता पलिन्दिनीदेविका (स्मृत्वा) स्मरण करके (स्वात्मन: कार्यद्धिये) आत्मा के कार्य की सिद्धि के लिये (निमित्तानीवक्ष्ये) निमित्तों को कहूँगा।
भावार्थ-जिनेन्द्र श्री वीर भगवान एवं सरस्वती देवी को नमस्कार कर तथा निमित्तों की अधिष्ठातापुलिन्दिनी देवि का स्मरण कर आत्मसिद्धि के लिये निमित्तों को कहूंगा ॥२॥
भीमान्तरिक्षादि भेदा अष्टौ तस्य बुधैर्मताः । ते सर्वेऽप्यत्र विज्ञेयाः प्रज्ञावद्भिर्विशेषतः॥३॥