Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
कुछ ऐसे नक्षत्रों में वस्त्र धारण करने पर शुभ की प्राप्ति, धन लाभ, शान्ति होना, पुत्र लाभ आदि मिलते हैं अशुभ सूचना मिलते ही शान्ति कर्म करे ।
नवीन वस्त्र धारण करते ही, फट जाय, जल जाय, गोबरादिक लग जाय तो उसका भी इष्टानिष्ट फल होता है ।
वस्त्र उत्तरीय वस्त्र पर अथवा शिर के साफा- - पगड़ी पर विशेष विचार करे वस्त्र के तीन भाग करे, देव, राक्षस और मनुष्य ।
नये वस्त्र के नौ भाग करे, वस्त्र के कोण के चार भाग पर देवता, प्रासान्त को दो भागों पर मनुष्य और मध्यके तीन भागों पर राक्षस निवास करते है । इसी प्रकार शय्या आसन खड़ाऊँ के ऊपर भी विचार करे ।
राक्षस भाग में जल जाय व फट जाय गोबरादिक लग जाय तो वस्त्र के स्वामी को रोग या मृत्यु होगी ।
मनुष्य भागों में वस्त्र के छेदादिक हो जाय तो पुत्र जन्मादिक लाभ प्राप्त होते हैं।
देवता के भागों में गोबरादिक व जल, फट जाय तो भागों की वृद्धि समस्त वस्त्र के भाग में छेद होना अनिष्ट सूचक है।
वस्त्र के जल जाने पर अथवा फट जाने पर उसकी कुछ आकृति पड़ जाती है, आकृतिके अनुसार भी फलादेश होता है।
मांसभक्षी पशु या पक्षियों के आकार का छेद हो तो वस्त्र के स्वामी का अनिष्ट होता है, छत्रादिक के आकार का छेद हो तो शुभफल देता है।
मांगलिक कार्यों में नये वस्त्र धारण करने पर नक्षत्रादिक देखने की कोई आवश्यकता नहीं है। नवीन वस्त्र धारण करने रूप इस अध्याय में आचार्य ने वर्णन किया है किन्तु विस्तार रूप से परिशिष्टोध्यायमें वर्णन मिलता है। वहाँ पर अवश्य देखें, अलग से इस सत्तावीसवें अध्याय में नये वस्त्र धारण नक्षत्रानुसार करने पर क्या फल होता है इसका वर्णन किया है।
विवेचन – ग्रह और नक्षत्र शुभाशुभ, क्रूर - सौम्य आदि अनेक प्रकार के होते हैं। शुभग्रह और शुभ नक्षत्रोंका फल शुभ और अशुभ ग्रह और अशुभ नक्षत्रोंका फल अशुभ मिलता है। इस अध्यायमें साधारणतया नवीन वस्त्राभरणादि धारण
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