Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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षडविंशतितमोऽध्यायः |
रुधिराभिषिक्तां कृत्वा यः स्वप्ने परिणीयते।
धन धान्य श्रिया युक्तो न चिरात् जायते नरः॥ ८२॥ (यः स्वप्ने) जो स्वप्न में (रुधिराभिषिक्तां कत्वा) रक्त से अभिषिक्त करके (परिणीयते) विवाह करता है वह (नरः) मनुष्य (धनधान्यश्रिया युक्तो) धन धान्य से युक्त (न चिरात् जायते) चिरकाल तक नहीं रहता है।
भावार्थ-जो स्वप्न में रक्त से अभिषिक्त होता हुआ विवाह करता है उस मनुष्य की सम्पत्ति चिरकाल तक नहीं रहती है।। ८२॥
शस्त्रेण छिद्यते जिह्वा स्वप्नेयस्य कथञ्चन।
क्षत्रियो राज्यमाप्नोति शेषा वृद्धिमवाप्नुयुः॥८३॥ (यस्य) जिसके (स्वप्ने) स्वप्न में (कथञ्चन) कदाचित् (शस्त्रेणछिद्यते जिह्वा) शस्त्र से जिह्वा छिदती हुई दिखे और अगर (क्षत्रियो राज्यमाप्नोति) वह क्षत्रिय हो तो राज्य प्राप्त करता है (शेषावृद्धिमवाप्नुयुः) शेष जन वृद्धि को प्राप्त करते
भावार्थ-जिस मनुष्य की जिह्वा स्वप्न में कदाचित् शस्त्र से कटती हुई दिखे तो क्षत्रिय राजा होता है शेष जन वृद्धि को प्राप्त करते है।। ८३ 11
देव साधु द्विजातीनां पूजनं शान्तये हितम्।
पापस्वप्नेषु कार्यस्य शोधनं चोपवासनम्॥८४।। (पापस्वप्नेषु) पाप रूप स्वप्न आने पर (देवसाधुद्विजातीनां) देव, गुरु, ब्राह्मणों के (हितम्) हित के लिये और (शान्तये) शान्ति के लिये (पूजन) पूजन (कार्यस्य) करना चाहिये (शोधनं चोपवासनम्) और उपवास से उसका शोधन करना चाहिये।
भावार्थ-अशुभ स्वप्नों के आने पर देव, साधु, ब्राह्मणों की पूजा करे व उपवास करे उससे अशुभ स्वप्न शान्त हो जाते हैं ।। ८४ ।।
एते स्वप्ना यथोद्दिष्टाः प्रायशः फलदा नृणाम्। प्रकृत्या कृपया चैव शेषाः साध्या निमित्ततः ।। ८५॥