Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ-स्वप्नमें यदि कन्या दिखे या आर्यिका दिखे अथवा रूप सौन्दर्य से सहित कन्या दिखे तो वह व्यक्ति सुन्दर स्त्री की प्राप्ति करता है॥७८॥
प्रक्षिप्यति यः शस्त्रैः पृथिवीं पर्वतान् प्रति।
शुमारोहते यस्य सोऽभिषेकमवाप्नुयात् ॥७९॥ जो (स्वप्ने) स्वप्न में (प्रक्षिप्यति शस्त्रैः) शस्त्रोंको फेंकता है (पृथिवीं पर्वतान् प्रति) पृथ्वि और पर्वतों के प्रति (यण शुभमारोहते) जो आरोहण करता है (मोऽभिषेक मवाप्नुयात्) वह अभिषेक को प्राप्त करता है।
भावार्थ-जो स्वप्नमें शस्त्रों को पृथ्वि और पर्वतों के प्रति क्षेपन करता है और पर्वत पर चढ़ता है उस व्यक्ति का राज्याभिषेक होता है॥७९॥
नारी पुस्त्वं नरः स्त्रीत्वं लभते स्वप्न दर्शने।
बध्येते तावुभौ शीघ्रं कुटुम्बपरिवृद्धये।। ८०॥ यदि स्वप्न में (नारीपुंस्त्वं) नारी पुरुषपने और (नर: स्त्रीत्वं) पुरुष स्त्रीपने को (लभते दर्शने) प्राप्त होते हुए दिखाई दे (तावुभौ शीघ्रं कुटुम्ब परिवृद्धये बध्यते) वह व्यक्ति शीघ्र ही कुटुम्ब के बन्धन में बाँधा जाता है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में स्त्री पुरुष का रूप, और पुरुष स्त्री रूप का देखे तो वह कुटुम्ब के बन्धन में बाँधा जाता है।। ८० ।।
राजा राजसुतश्चौरो नो सह्याधन धान्यतः।
स्वप्ने संजायते कश्चित् स राज्ञामभिवृद्धये॥८१॥ (स्वप्ने) स्वप्न में यदि कोई (राजा) राजा (राजसुतश्चौरो) राजपुत्र या चोर होता हुआ देखे और (सह्याधन धान्यत:) अपने को धन-धान्य से पूर्ण देखे तो (कश्चित सराजामभिवृद्धये) उस राजा की अभिवृद्धि होती है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में कोई राजा धन-धान्य से पूर्ण राजपुत्र या चोर होता हुआ देखे तो उस राजा की अभिवृद्धि होती है।। ८१॥