Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
धूमयेत्) अभिधूमित करे तो (ततः) वहाँ पर ( ग्रहः ) ग्रह ( शस्त्रोप जीवीनां ) शस्त्र की आजीविका करने वालों को (स्थावरं हिंसते) और स्थावरों की हिंसा होती है ।
भावार्थ-यदि केतु किसी नक्षत्र या ग्रह को धूमित करे तो वहाँ पर शस्त्र से आजीविका करने वालों का घात होता है या स्थावरों की हिंसा होती है ।। २३ ॥
स्थावरे
शबरां
धूमिते तज्ज्ञा यायिनो यात्रिधूपने ।
भिल्लजातीनां पारसीकांस्तथैव च ॥ २४ ॥
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यदि केतु से (स्थावरे धूमितेतज्ज्ञा) स्थावर धूमित होते हैं या (यायिनो यात्रिधूपने ) आने वाला यात्री धूमित होता है, तो (शबरांभिल्लजातीनां शबर, भील जाति (च) और ( पारसीकांस्तथैव ) पारसी आदि पीड़ित होते हैं ।
भावार्थ - यदि केतु से स्थावर धूमित होते है या आने वाला यात्री धूमित होता है तो भील जाति शबर जाति और पारसी जाति पीड़ित होती है ॥ २४ ॥ रुपागतः । पीडयेत् ॥ २५ ॥
शुक्रं दीप्त्या यदि हन्याद्भूमकेतु तदा सस्यं नृपान् नागान् दैत्यान् शूरांश्च
( यदि ) यदि (धूमकेतु) धूमकेतु अपनी (दीप्त्या) दीप्ती से (शुक्रं ) शुक्र का (रुपागत: हन्याद्) जाकर घात करे तो ( तदा) तब ( सस्य नृपान् ) धान्यों का राजाओं का (नागान्) नागों का ( दैत्यान्) दैत्योंका (शूरांश्च पीडयेत् ) और योद्धाओं का घात होता है उनको पीड़ा होती है ।
भावार्थ - यदि भूमकेतु अपनी दीप्ती से शुक्र को घाते तो धान्य राजा, नाग, दैत्य और योद्धा इन सबको पीड़ा होती है ॥ २५ ॥
शुकानां शकुनानां च वृक्षाणां चिर शकुनि ग्रहपीडायां फलमेतत्
जीविनाम् । समादिशेत् ॥ २६ ॥
(शकुनिग्रहपीडायां ) शकुनि नामक ग्रह को पीडा में (शुकानां) शुक (शकुनानां च) और पक्षी (चिर जीविनाम् वृक्षाणां ) चिर जीवी वृक्षों का पीड़ा कारक (फलमेतत् समादिशेत्) फल कहना चाहिये ।