Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ--जब युद्ध में नागर ग्रहों के परस्पर घातित होने पर नगरनिवासियों को घोर भय उपस्थित होगा॥१०।।
यायिनो वामतो हन्युग्रहयुद्धे विमिश्रकाः ।
पीडयन्ते भौमपीडायां भयं सर्वत्र संयुगे॥११॥ (युद्धे) युद्ध में यदि (विमिश्रका:) विमिश्रिक उल्का तारा. अशनि आदि (गारिनो दाममो हन्छः) पापि संक ग्रह बाल ओर से (पीड्यन्ते) पीड़ित किये जाये तो (भौमपीडायां भया सर्वत्र संयुगे) सर्वत्र भौमपीडा से पीड़ित होंगे।
भावार्थ-युद्ध में यदि विमिश्रिक उल्का यायि संज्ञक ग्रह वाम ओर से पीड़ित किये जाय तो सब जगह भौम पीड़ा से पीड़ित होंगे॥११॥
सौम्यजातं तथा विप्राः सोम नक्षत्र राशयः। उदीच्याः पर्वतीयाश्च पाञ्चालाद्यास्तथैव च ॥ १२॥ पीड्यन्ते सोमघातेन् नभो धूमाकुलं भवेत्।
तन्नामधेयास्तद्भक्ताः सर्वे पीडयन्ते तान्समान्॥१३॥ (सौम्यजातं) सौम्य जात (तथा विप्राः) तथा विप्र (सोम नक्षत्र राशयः) सोम नक्षत्र और राशि वाले, (उदीच्याः पार्वतीयाश्च) उदीच्य , पर्वत वासी (पाञ्चालाद्याघास्तथैवच) और उसी प्रकार पांचालादि निवासी, (सोमघातेन पीड्यन्ते) सोम के धूलित होने पर पीड़ा को प्राप्त होते हैं (नभो धूमाकुलां भवेत्) यदि आकाश धूमाकुल हो तो (तन्नामधेया स्तक्ता) उस नाम धारी व उसके भक्त (सर्वेपीड्यन्ते तान्समान्) सभी उसी के समान पीड़ा को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा के द्वारा ग्रह पीड़ित हो आकाश धूम से व्याप्त हो तो सौम्य जाति वाले विप्र सोम्य राशि वाले तथा उदीच्य, पर्वत वा, पांचालवासी उसी प्रकार नाम वाले व उनके भक्त उसी प्रकार की पीड़ा को प्राप्त होते हैं।। १२-१३॥
बर्बराश्च, किराताश्च, पुलिन्दा द्रविडास्तथा। मालवा मलया वङ्गाः कलिङ्गाः पार्वतास्तथा ॥१४॥