Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चविंशतितमोऽध्यायः
वस्तु तेजी मन्दी का वर्णन नक्षत्रं ग्रहसंपत्त्या कृत्स्नस्या) शुभाशुभम्।
तस्मात् कुर्यात् सदोत्थाय नक्षत्रग्रहदर्शनम्॥१॥ (नक्षत्रं ग्रह संपत्त्या कृत्स्नस्याध) समस्त तेजी मन्दी नक्षत्र और ग्रहों के (शुभाशुभम्) शुभाशुभ पर निर्भर है (तस्मात्) इस कारण से (सदोत्थाय) नित्यप्रातः उठकर (नक्षत्रग्रह दर्शनम् कुर्यात्) ग्रह और नक्षत्रों के दर्शन करना चाहिये।
भावार्थ-वस्तुओं की तेजी मन्दी नक्षत्र और ग्रहों के शुभाशुभ पर निर्भर रहती है। इस कारण से नित्य ही प्रातः उठकर ग्रहों और नक्षत्रों का अवलोकन करना चाहिये, अर्थात् देखना चाहिये॥१॥
सर्वे यदुत्तरे काष्ठे ग्रहाः स्युः स्निग्धवर्चसः।
तदा वस्त्रं च न ग्राह्यं सुसमासाम्यमर्घताम्॥२॥ (स्निग्ध वर्चस: ग्रहा: स्युः) यदि स्निग्ध और तेजस्वी ग्रह (सर्वे यदुत्तरे काष्ठे) सभी उत्तर में दिखे (तदा वस्त्रं च न ग्राह्य) तो वस्त्रों को ग्रहण नहीं करना चाहिये (सुसमासाम्यमर्घताम्) क्योंकि वस्त्रों के भावों में समानता रहती है, भाव नहीं बढ़ते
भावार्थ- यदि स्निग्ध और तेजस्वी ग्रह उत्तर दिशा में हो तो वस्त्रों को नहीं खरीदे, क्योंकि वस्त्रों के भावों में समानता रहती है, भाव तेज नहीं होते है॥२॥
क्षीरं क्षौद्रं यवा: कङ्गदारा: सस्यमेव च।
दौर्भाग्यं चाधिगच्छन्ति नैवानिचया यबुधः॥३॥ (क्षीरां क्षौद्रं यवा: कड) दूध, मधु, जौ और कांगनी (रुदारा: सस्यमेव च) धान्यादि पदार्थ (यद् बुधः) जो बुध की स्थिति में है (दौ भाग्यं चाधिगच्छन्ति) उसी के अनुसार तेज और मन्द होते है (नैवानिचया) उसका कोई निश्चय नहीं