Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ चन्द्रमा उत्तर का होकर चित्रा नक्षत्र के प्रति जावे तो कांगनी, दार, तिल, उड़द, चना, साठी के चावल आदि ॥ ३४ ॥
संग्राह्यं च तदा धान्यं योगक्षेमं न अल्पसारा भवन्त्येते चित्रा वर्षा न
जायते ।
संशयः ॥ ३५ ॥
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(संग्राह्यं च तदा धान्यं) तब धान्यों का संग्रह करे (योगक्षेमं न जायते) क्योंकि योगक्षेम नहीं होता है (अल्पसारा भवन्त्येते) अल्पसार रहता है (चित्रावर्षा न संशय:)
चित्रा की वर्षा नहीं होती है।
भावार्थ तब धान्यों का संग्रह करे वहाँ पर योगक्षेम नहीं होता है अल्पसार के कारण वर्षा नहीं होती है ॥ ३५ ॥
विशाखामध्यगः शुक्रस्तोयदो समर्थ यदि विज्ञेयं दशद्रोण
(विशाखामध्यगः शुक्रः ) विशाखा नक्षत्र के मध्य यदि शुक्र हो तो (तो यदो धान्य वर्धनः ) वर्षा धान्य की वृद्धि में कारण होता है (समर्यं यदि विज्ञेयं) अनाज का भाव सम होता है (दश द्रोण क्रयं वदेत्) दस द्रोण प्रमाण खरीदा जाता है। भावार्थ - विशाखा नक्षत्र के मध्य यदि शुक्र हो तो वर्षा धान्य की वृद्धि में कारण होती है अनाज का भाव सम होता, दस द्रोण प्रमाण धान्य खरीदा जाता है ॥ ३६ ॥
धान्यवर्धनः ।
क्रयं वदेत् ॥ ३६ ॥
यायिनी चन्द्र शुक्रौ तु दक्षिणामुत्तरो तदा । विशाखायोर्धातास्तदाऽर्घन्ति
तारा
चतुष्पदाः ॥ ३७ ॥ (यायिनौ चन्द्र शुक्रौ तु ) जब यायी चन्द्र और शुक्र (दक्षिणामुत्तरो तदा ) दक्षिण उत्तर में हो ( तारा विशाखशयोर्घाताः ) और ताराविशाखा नक्षत्र का घात करे ( तदाऽर्घन्ति चतुष्पदाः ) तब चौपायों की वृद्धि होती है।
भावार्थ - यदि यायी चन्द्र और शुक्र दक्षिण और उत्तर में हो तो तारा विशाखा नक्षत्र का घात हुआ हों तब चौपायों की वृद्धि होती है ॥ ३७ ॥