Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ- जब चन्द्रमा दक्षिण में मन्द होता हुआ मूल नक्षत्र का सेवन करे तो धान्योत्पत्ति बहुत होती है। और आढ़क प्रमाण वर्षा होती है।। ४१॥
कृत्तिका रोहिणी चित्रां पुष्याश्लेषा पुनर्वसून् ।
ब्रजति दक्षिणश्चन्द्रो दशप्रस्थं तदा भवेत्॥४२॥ (दक्षिणश्चन्द्रो) जब दक्षिणका चन्द्रमा (कृत्तिका रोहिणी चित्रां) कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा (पुष्याश्लेषा पुनर्वसुन्) पुष्य, आश्लेषा, पुनर्वसु में (व्रजति) गमन करे (तदा) तो (दशप्रस्थं भवेत्) दस प्रस्थ प्रमाण धान्य होता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा, पुष्य, आश्लेषा, पुनर्वसु नक्षत्र की तरफ गमन करे तो समझो दस प्रस्थ प्रमाण धान्योत्पत्ति होती है, उतने ही प्रमाण धान्य बिकता है।। ४२ ।।
मघां विशाखां च ज्येष्ठाऽनुराधे मूलमेव च।
दक्षिणे व्रजतेशुक्रश्चन्द्रे तदाऽऽढकमेव च॥४३॥ (शुक्रश्चन्द्रे) शुक्र और चन्द्रमा के (दक्षिणे) दक्षिण में (मघां विशाखां च ज्येष्ठा) मघा, विशाखा, ज्येष्ठा (अनुराधेमूलमेव च) और अनुराधा, मूल नक्षत्र की ओर (व्रजेत्) गमन करे (तदा) तो (आढकमेव च) एक आदक प्रमाण धान्य की बिक्री होती है।
भावार्थ-शुक्र और चन्द्रमा के दक्षिणमें मघा विशाखा ज्येष्ठा, अनुराधा, मूल नक्षत्रकी ओर गमन करे तो समझो एक आढ़क प्रमाण धान्य बिकता है॥४३ ।।
कृत्तिकां रोहिणी चित्रां विशाखां च मघां यदा।
दक्षिणेन् ग्रहायान्ति चन्द्रस्त्वादकविक्रयः॥४४॥ (यदा) जब (दक्षिणेन् ग्रहायान्ति) ग्रह दक्षिण से (कृत्तिका रोहिणी चित्रां) कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा (विशाखां च मघां) विशाखा और मघा नक्षत्र की ओर गमन करे तब (आढका विक्रयः) आढ़क प्रमाण धान्य की बिक्री होती है।
भावार्थ-जब दक्षिण से चन्द्र ग्रह कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा, विशाखा और मघा की तरफ जाता है तो एक आदक प्रमाण धान्य की बिक्री होती है।। ४४ 11