Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
६९६
योग होता है। प्रथम संक्रान्ति प्रवेशके नक्षत्रमें दूसरी संक्रान्ति प्रवेशका नक्षत्र दूसरा या तीसरा हो तो अनाज सस्ता होता है। चौथे या पाँचवें पर प्रवेश हो तो धान्य तेज एवं छठवें नक्षत्रमें प्रवेश हो तो दुष्काल होता है।
संक्रान्ति से गणित द्वारा तेजी-मन्दीका परिज्ञान--संक्रान्ति जिस दिन प्रवेश हो उस दिन जो नक्षत्र हो उसकी संख्या तिथि और वारकी संख्या जो उस दिनकी हो, उसे मिला देना चाहिए। इसमें जिस अनाजकी तेजी-मन्दी जाननी हो उसके नामके अक्षरकी संख्या मिला देना। जो योगफल हो उसमें तीनका भाग देनेसे एक शेष बचे तो वह अनाज उस संकान्तिके मासमें मन्दा बिकेगा, दो शेष बचे तो समान भाव रहेगा और शून्य शेष बचे तो वह अनाज महंगा होगा।
संक्रान्ति जिस प्रहरमें जैसी हो, उसके अनुसार सुख-दुःख, लाभालाभ आदिकी जानकारी निम्न चक्र द्वारा करनी चाहिए।
वारानुसार संक्रान्ति फलाववोधक चक्र | वार | नक्षत्र | नाम फल | काल । फल | दिशा । रवि उग्र धोरा शोको सुख
विोंको सुख पूर्व सोम | क्षिप्र | ध्वांक्षी वैश्योंको सुख
वैश्योंको सुख दक्षिण कोण भंगल महोदरी चोरोंको सुख अपराक
शूद्रोंको मुख पश्चिम कोण बुध । मैत्र मंदाकिनी राजाओंको सुख प्रदोष पिशाचोंको सुख दक्षिण ध्रुव | नन्दा | हिजगणोंको सुख
अर्द्धरात्रि
राक्षसोंको सुख | उत्तर कोण मिश्र | पशुओंको सुख अपररात्रि | नटादिको सुख | पूर्व कोण दारुण राक्षसी | चाण्डालोंको सुख । प्रत्युषकाल पशुपालकों को | उत्तर
सुख
वार
पूर्वाह्न
मध्याह
मिश्रा
ध्रुव-चर-उन-मिश्र-लघु-मृदु-तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र-उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद और रोहिणी ध्रुव संज्ञक, वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा
और शतभिषा चर या चल संज्ञक, विशाखा और कृत्तिका मिश्र संज्ञक, हस्त, अश्विनी, पुष्य और अभिजित् क्षिप्र या लघु संज्ञक, मृगशिर, रेवती, चित्रा और अनुराधा