Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
पञ्चविंशतितमोऽध्यायः |
मृदु या मैत्र संज्ञक एवं मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा और आश्लेषा तीक्ष्ण या दारुण संज्ञक .
अधोमुख संज्ञक-मूल, आश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी और मघा अधोमुख संज्ञक हैं।
ऊर्ध्वमुख संज्ञक—आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा ऊर्ध्वमुख संज्ञक हैं।
तिर्यङ् मुख संज्ञक अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, ज्येष्ठा और अश्विनी तिर्यङ्मुख संज्ञक है।
दग्ध संज्ञक नक्षत्र-रविवारको भरणी, सोमवारको चित्रा, मंगलवारको उत्तराषाढ़ा, बुधवारको धनिष्ठा, बृहस्पतिको उत्तराफाल्गुनी, शुक्रवारको ज्येष्ठा और शनिवारको रेवती दग्ध संज्ञक है।
मास शून्य नक्षत्र–चैत्रमें रोहिणी और अश्विनी, वैशाखमें चित्रा और स्वाति, ज्येष्ठमें उत्तराषाढ़ा और पुष्य, आषाढ़में पूर्वाफाल्गुनी और धनिष्ठा, श्रावणमें उत्तराषाढ़ा और श्रवण, भाद्रपदमें शतभिषा और रेवती, आश्विनमें पूर्वाभाद्रपद, कात्तिकमें कृत्तिका और मघा, मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा, पौषमें आर्द्रा, अश्विनी और हस्त, माघमें श्रवण और मूल एवं फाल्गुनमें भरणी और ज्येष्ठा शून्य नक्षत्र हैं।
___ संक्रान्ति प्रवेशके दिन नक्षत्रका स्वभाव और संज्ञा अवगत करके वस्तुकी तेज-मन्दी जाननी चाहिए। यदि संक्रान्तिका प्रवेश तीक्ष्ण, दग्ध या उग्र संज्ञक नक्षत्रमें होता है, तो सभी वस्तुओंकी तेजी समझनी चाहिए। मृदु और ध्रुव संज्ञक नक्षत्रों में संक्रान्तिका प्रवेश होनेसे समानभाव रहता है। दारुण संज्ञक नक्षत्रमें संक्रान्तिका प्रवेश होनेसे खाद्यानोंका अभाव रहता है, सभी अन्य उपभोगकी वस्तुएँ भी उपलब्ध नहीं हो पाती।