Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
७२१
षड्विंशतितमोऽध्यायः
( स्वप्ने) स्वप्न में कोई (आसनं शयनयानं) आसन, शयन, गृह (वस्त्रंच) और वस्त्र को (भूषणम्) भूषणों को (कस्मै प्रदीयन्ते) किसी को देवे तो (सुखिन: श्रियमाप्नुयात) सुखी होगा लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ।
भावार्थ-स्वप्न में कोई आसन शयन घर वस्त्र, भूषण को किसी को देवे तो समझो वह सुखी होगा लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ॥ ४९ ॥
अलङ्कृतानां द्रव्याणां वाजि वारणयोस्तथा । वृषभस्य च शुक्लस्य दर्शने प्राप्नुयाद् यशः ॥ ५० ॥
( अलंकृतानां द्रव्याणां ) अलंकृत पदार्थ (वाजि वारणयोस्तथा) घोड़ा हाथी तथा (वृषभस्य च शुक्लस्य) सफेद बैल (दर्शन) देखे तो ( यशः प्राप्नुयाद्) यश: की प्राप्ति होती है।
भावार्थ - यदि स्वप्न में अलंकृत पदार्थ हाथी, घोडे, सफेद बैल आदि का देखना समझो यशः की प्राप्ति होती है ॥ ५० ॥
पताकामसिया वा शुक्ति मुक्तान् सकाञ्चनान् । दीपिकां लभते स्वप्ने थोऽपि ते लभते धनम् ॥ ५१ ॥
( स्वप्ने) स्वप्न में (योsपि ) जो भी ( पताकामसियष्टिं च) पताका तलवार, लकड़ी ( शुक्ति मुक्तान् सकाञ्चनान् ) शुक्ती, मुक्ता सोना (दीपिकांलभते ) दीपक आदि को प्राप्त करता है तो (ते) वे (धनम् लभते ) धन को प्राप्त करता है।
भावार्थ-स्वप्न में जो भी पताका तलवार लकड़ी, शुक्ती, मोती सोना दीपक आदि को प्राप्त करता हुआ देखे तो वो धन को प्राप्त करता है ।। ५१ ।
मूत्रं वा कुरुते स्वप्ने पुरीषं वा सलोहितम् । प्रतिबुध्येत्तथा यस्व लभते सोऽर्थनाशनम् ।। ५२ ।।
•
(स्वप्ने) स्वप्न में (मूत्रं वा कुरुते पुरीषं वासलोहितम् ) जो कोई मल-मूत्र देखता हुआ ( प्रतिबध्ये तथायच्च) जाग्रत हो जाता हैं ( सोऽर्थलभतेनाशनम्) तो प्राप्त किया हुआ धन भी नाश हो जाता है।
'
भावार्थ- स्वप्न में जो कोई मल-मूत्र देखता हुआ जाग्रत हो जाता है उसका धन नाश हो जायगा ॥ ५२ ॥