Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पविंशतितमोऽध्यायः
च्यवनं प्लवनं यानं पर्वताग्रं दुभं गृहम्।
आरोहन्ति नराः स्वप्ने वातिका: पक्षगामिनः॥७॥ (च्यवन) गिरना (प्लवनं) तैरना, दौड़ना (यानं) सवारी करना (पर्वताग्रं द्रुमं गृहम्) पर्वत के ऊपर चढ़ना प्रासाद के ऊपर, (आरोहन्ति) चढ़ना आदि (वातिका:) वात पित्ता वाला (नरा:) मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (पक्षगामिनः) देखता है।
भावार्थ-वात पित्त वाला मनुष्य स्वप्न में गिरना तैरना, दौड़ना, सवारी करना पर्वत पर चढ़ना, प्रासादयस्पदना देखता है॥७॥
सिंह व्याघ्रगजैर्युक्तो गो वृषाश्चैनरैर्युतः।
रथमारुह्य यो याति पृथिव्यां स नृपो भवेत्॥८॥
(यो) जो (सिंह माया गर्जर्युक्तो) सिंह, बाला, हामी हो, संयुक्त होकर (गो) गाय (वृषाश्चै नरैर्युतः) बैल, घोड़ा, मनुष्य से युक्त (स्थमारुह्य) रथ पर आरोहण करता हुआ स्वप्न में देखता है तो (स) वह मनुष्य (पृथिव्यांन नृपो भवेत्) पृथ्वी पर राजा होता है।
भावार्थ-जो मनुष्य सिंह व्याघ्र, हाथी, गाय, बैल और घोड़ा से युक्त होकर रथ पर चढ़कर गमन करता हुआ यदि स्वप्न में देखे तो वह अवश्य राजा होता है॥८॥
प्रसादं कुञ्जरवरानारुह्य सागरं विशेत् ।
तथैव च विकथ्येत् तस्य नीचो नृपो भवेत् ।। ९ ।।
(विशेत) विशेष रीती से जो मनुष्य स्वप्न में (कुञ्जरवरानारुह्य) हाथी पर चढ़कर (प्रासादं सागर) प्रासाद या समुद्र में प्रवेश करे तो (तथैव च) उसी प्रकार (विकथ्ये) कहा गया है कि (तस्य नीचो पो भवेत्) उस देश का नीच राजा होता
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में स्वयं को हाथी पर बैठे हुए समुद्र में या महल में प्रवेश करता हुआ देखे तो समझो उस देश का राजा नीच होता है॥९॥
पुष्करिण्यां तु यस्तीरे भुञ्जीत शालि भोजनम्। श्वेतं गजं समारूढः स राजा अचिराद् भवेत् ॥१०॥