Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चविंशतितमोऽध्यायः
यदा
वस्त्रं
दक्षिणेनानुराधायां अप्रभश्च प्रहीण
द्रोणाय
( यदा) जब ( दक्षिणेनानुराधायां) दक्षिण में अनुराधा नक्षत्र के प्रति (अप्रभश्च प्रहीणश्च ) प्रभारहित (शशी व्रजते ) होकर चन्द्रमा गमन करे तो (वस्त्रं द्रोणाय कल्पयेत् ) वस्त्र द्रोण प्रमाण महँगे होते है।
भावार्थ - यदि जब चन्द्रमा निष्प्रभ होकर दक्षिण की तरफ अनुराधा में गमन करे तो समझो वस्त्र महँगे होंगे || ३८ ॥
च
व्रजते
शशी ।
कल्पयेत् ॥ ३८ ॥
ज्येष्ठा मूलौ यदा चन्द्रो दक्षिणे तदा सस्यं च वस्त्रे च शरीरी वार्थं प्रजानामनयो घोरस्तदा जायन्ति प्रस्तक्रयस्य वस्त्रस्य तेन श्रीयन्ति तां
व्रजतेऽप्रभः ।
विनश्यति ॥ ३९ ॥
तामसः ।
प्रजाम् ॥ ४० ॥
( यदा) जब (अप्रभः) प्रभारहित (चन्द्रो ) चन्द्रमा (ज्येष्ठामूलौ) ज्येष्ठा मूल नक्षत्र ( दक्षिणेव्रजते) दक्षिण में गमन करे (तदा) तो ( सस्यं च वस्त्रं च ) धान्य और वस्त्र (शरीरी वार्थं विनश्यति) तथा धनादिकका नाश होता है, (प्रजानामनयोघोरः ) प्रजा में घोर ( जायन्ति तामस :) अन्धकार छा जाता है ( प्रस्तक्रयस्य वस्त्रस्य ) अन्न व वस्त्र के लिये हा हाकार मचता है ( तेनक्षीयन्ति तां प्रजाम् ) इस कारण से प्रजा नाश को प्राप्त होती है ।
भावार्थ —– जब प्रभा रहित होकर चन्द्रमा ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र दक्षिण में गमन करे तो धान्य और वस्त्र महँगे होते है। धनादिकका नाश होता है, अन्न और वस्त्र के लिये प्रजा में हा हाकार होता है, उससे प्रजा क्षीणता को प्राप्त होती है ।। ३९-४० ॥
मूलं मन्देव सेवन्ते यदा दक्षिणतः प्रजाति सर्वधान्यानां आढका नु तदा
शशी । भवेत् ॥ ४१ ॥
' (यदा) जब (शशी) चन्द्रमा (दक्षिणतः ) दक्षिण में (मूलमन्देव सेवन्ते) मन्द होता हुआ मूल नक्षत्र का सेवन करे (तदा) तो ( प्रजातिसर्वधान्यानांआढकानु) प्रजामें उस वर्ष धान्य बहुत होता है और आढ़क प्रमाण वर्षा भी ( भवेत् ) होती है।