Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चविंशतितमोऽध्यायः
(सुवर्णमणिमोक्तिकै) सोना, मणि, मुक्ता, (महिष्यजादिभिर्वस्त्रः ) महीष बकरी वस्त्र आदि से (धान्यं) और धान्य (क्रित्वा) खरीदकर (निवापयेत् ) नहीं खोने चाहिये । भावार्थ — उपर्युक्त प्रकार की स्थिति में गाय, अस्त्र, चाँदी, सुर्वण, मणी, मुक्ता, महीष, बकरी, वस्त्र आदि से धान्य खरीदे किन्तु जमीन में नहीं बोवे, नहीं तो कुछ उपलब्धि नहीं होगी ॥ ३१ ॥
चित्रायां तु यदा शुक्रश्चन्द्रो भवति दक्षिण: । षड्गुणं जायते धान्यं योगक्षेमं च जायते ॥ ३२ ॥
( यदा) जब (चित्रायां तु) चित्रा नक्षत्र में (दक्षिण) दक्षिण की ओर (शुक्रश्चन्द्रो भवति) शुक्र और चन्द्रमा होता है तो (षड्गुणं जायतेधान्यं) धान्य छह गुणा होता है ( योगक्षेम च जायते) और योग क्षेम होता है।
भावार्थ- जब चित्रा नक्षत्र में दक्षिण की ओर शुक्र चन्द्रमा हो तो धान्य छह गुणा होता है और योग क्षेम होता है ।। ३२ ।।
इन्द्राग्नि देव संयुक्ता यदि सर्वे ग्रहाः कृशाः । अभ्यन्तरेण मार्गस्थास्तारका यास्तु
( यदि सर्वे ग्रहाः कृशाः ) यदि सभी ग्रह कृश होकर ( इन्द्राग्नि देव संयुक्ता ) विशाखा नक्षत्र में युक्त होकर (अभ्यन्तरेण मार्गस्था) अभ्यन्तर मार्गस्थ हो (स्तारकाः यास्तु बाद्यतः) और तारका की तरफ गमन करता हुआ बादलों में जावे ।
भावार्थ -- यदि सभी ग्रह क्षीण होकर विशाखा नक्षत्र में युक्त होकर अभ्यन्तर मार्ग में तारा की ओर गमन करते हुए बादलों की तरफ जावे ।। ३३ ।।
न
बाद्यतः ॥ ३३ ॥
कङ्गुदार तिला मुद्गाश्चणकाः षष्टिकाः चित्रायोगं सर्पेत चन्द्रमा
शुकाः ।
उत्तरो भवेत् ॥ ३४ ॥
( चन्द्रमा उत्तरो भवेत् ) चन्द्रमा की ओर (चित्रायोगं न सर्पेत) चित्रा नक्षत्र में जावे तो (कुमुदार तिलामुद्गाः) कांगनी, दार, तिल, उड़द (चणकाः षष्टिकाः शुकाः) चना, साठी के चावल आदि ।