Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चविंशक्तियोऽध्यायः
गुरुः शुक्रश्च भौमश्च दक्षिणाः सहिता यदा।
प्रस्थत्रयं तदा वस्त्रैर्यान्ति मृत्युमा प्रजाः॥४५॥ (यदा) जब (गुरुः शुक्रश्च भौमश्च) गुरु, शुक्र, मंगल (दक्षिणाः सहिता) दक्षिण से सहित होते हैं (तदा) तो (प्रस्थत्रयं) तीन प्रस्थ (वस्त्रैर्यान्ति) वस्त्र हो जाते हैं (मृत्युमुखं प्रजाः) प्रजा मरण के सन्मुख हो जाती है।
___ भावार्थ-जब दक्षिण से गुरु, शुक्र, मंगल सहित होते हैं, तब तीन प्रस्त्र तो वस्त्र बिकते हैं और प्रजा मरणोन्मुख हो जाती है॥४५ ।।
उत्तरं भजते मार्ग शुक्रपृष्ठं तु चन्द्रमाः।
महाधान्यानि वर्धन्ते कृष्णधान्यानि दक्षिणे॥४६॥
जब (शुक्र) शुक्र (उत्तरं भजते मार्ग) उत्तर मार्ग से आगे हो (चन्द्रमा तु पृष्ठं) और चन्द्रमा पीछे हो तब (महाधान्यानि वर्धन्ते) महाधान्योंकी वृद्धि होती है (दक्षिणे) यही स्थिति दक्षिण में हो तो (कृष्ण धान्यानि) काले धान्यों की वृद्धि होती है।
भावार्थ-जब शुक्र उत्तर से गमन कर रहा हो और चन्द्रमा के पीछे हो तो महाधान्यों की वृद्धि होती है, अगर यह स्थिति दक्षिण की ओर हो तो काले धान्यों की वृद्धि होती है॥४६॥
दक्षिणं चन्द्रशृङ्गं च यदा वृद्धतरं भवेत्।
महाधान्यं तदा वृद्धं कृष्णधान्यमथोत्तरम् ।। ४७॥ (यदा) जब (चन्द्रशृंग) चन्द्रमा का शृंग (दक्षिण) दक्षिण में (वृद्धतरं भवेत्) वृद्धि को हो तो (महाधान्यं तदा) महाधान्य की वृद्धि होती है (कृष्णधान्यंमथोत्तरम्) इसी प्रकार उत्तर दिशाका चन्द्र भंग हो तो काले धान्य के भी भाव बढ़ते हैं।
भावार्थ-जब चन्द्रमा का दक्षिण भंग वृद्धि की ओर दिखे तो महाधान्य की वृद्धि होती है और उत्तर को दिखे तो काले धान्य की वृद्धि समझो ॥४७॥
कृत्तिकानां मघानां च रोहिणीनां विशाखयोः । उत्तरेण महाधान्यं कृष्ण धान्यञ्च दक्षिणे॥४८॥