Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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कोशधान्यं सर्षपाश्च पीतं रक्तं तथाग्निजम्।
अङ्गारकं विजानीयात् सर्वेषां प्रतिपुद्गलम्॥७॥ (कोशधान्यं सर्षपाश्च) कोश, धान्य, सरसों और (पीतं रक्तं तथाग्निजम्) पीला और लाल धान्य ये (सपा) सब (अरक) अंधारक के (प्रतिपुद्गलम्) प्रतिपुद्गल (विजानीयात्) जानना चाहिये।
भावार्थ-अंगारक के प्रतिपुद्गल कोश, धान्य, सरसों पीले और लाल पदार्थ और अग्नि पर उत्पन्न होने वाले पदार्थ है, ऐसा जानना चाहिये॥७॥
महाधान्यस्य महतामिक्षणां शर वंशयोः ।
गुरूणां मन्द पीतानामथो ज्ञेयो वृहस्पतिः॥८॥ (महाधान्यस्य) महाधान्य (महतामिक्षणां) मोटे धान्य (शर वंशयोः) इक्षु वंश (गुरूणां मन्द पीतानाम) गुरु, मन्द, पीला आदि (अथो वृहस्पति: ज्ञेयो) इन सब के स्वामी गुरु जानो।
भावार्थ-महाधान्य, मोटे धान्य, इक्षु वंश, मन्द पीले पदार्थों के स्वामी गुरु है॥८॥
मुक्ता मणि जलेशानां सूर सौवीर सोमिनाम्।
शृङ्गिणामुदकानां च सौम्यस्य प्रतिपुद्गलाः॥९॥ (मुक्ता मणि जलेशानां) मुक्ता मणि, जलसे उत्पन्न पदार्थ, (सूर सौवीर सोमिनाम्) सोमलता, बेर या अन्य खट्टे पदार्थ, कांजी, (शृत्रिणामुदकानां) शृङ्गी (च) और समस्त जलसे उत्पन्न पदार्थ, (सोमस्य प्रतिपुद्गला:) ये सब चन्द्रमा के प्रतिपुद्गल है।
भावार्थ-मोती, जलमें उत्पन्न होने वाली वस्तुएँ सोमलता, बेर व खट्टे पदार्थ कांजी, शृंशी और जल से उत्पन्न पदार्थ ये सब चन्द्रमा के प्रतिपुद्गल है॥९॥
उद्भिजानां च जन्तूना कन्द मूल फलस्य च।
उष्णवीर्य विपाकस्य रवेस्तु प्रतिपुद्गलाः ।।१०॥ (उद्भिजानां च जन्तूनां) उद्भिज और जन्तु (कन्द मूल फलस्य च) कन्द