Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
वर्णेषु नागरेषु यायिनामपि
एवं शिष्टेषु उत्तरं उत्तरा वर्णा
नीलाद्यास्तु नागराणां
( एवं शिष्टेषु वर्णेषु) इस प्रकार के शिष्ट वर्ण के ग्रहों में (नागरेषु विचारतः ) नागरों का विचार करे ( उत्तरंतरावर्णा) उत्तर वर्ण के ग्रहों का उत्तर ग्रहों में विचार करे (यायिनामपित्)ि एवं साथियों की उत्ता विजय करे।
भावार्थ — इस प्रकार शिष्ट वर्णों के ग्रहों को नागर ग्रहों का विचार करे उत्तर के उत्तर के साथ विचार कहे और यायिकी उत्तर विजय प्रकट करे ॥ २५ ॥ रक्तो वा यदि वा नीलो ग्रहः संपद्यते स्वयम् । नागराणां तदा विन्धात् जयं वर्णमुपस्थितम् ॥ २६ ॥
विचारतः ।
निर्दिशेत् ॥ २५ ॥
( यदि ) यदि (रक्तो वा ) लाल वा (वा नीलो ग्रहः ) नीला ग्रह ( संपद्यते स्वयम् ) स्वयं युद्ध करे तो ( तदा) तब ( नागराणां जयं विन्द्यात्) नागरिकों की जय होती है ऐसा आप जानो (वर्णमुपस्थितम्) वर्णों की उपस्थिति होती है।
भावार्थ-लाल व नील ग्रह परस्पर युद्ध करे तो नागरिकों की परस्पर वर्णानुसार जय होती है | २६ ॥
यदा
विजानीयात्
वर्णा उत्तरांयुन्तरं निर्ग्रन्थे
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पुनः । ग्रहसंयुगे ॥ २७ ॥
( यदा) जब ( नीलाद्यास्तु) नीले (वर्णान्) वर्ण के ग्रह (उत्तरांयुत्तरं पुनः ) उत्तर दिशा में युद्ध करे तो (नागराणां विजानीयात्) नगरनिवासियों की विजय जानो (निर्ग्रन्थे ग्रहसंयुगे) ऐसा निर्ग्रन्थों ने कहा है ।
भावार्थ — जब नीले वर्णों का ग्रह उत्तर दिशा में युद्ध करे तो नगरनिवासियों की विजय होती है ऐसा निग्रन्थ साधुओं ने कहा है || २७ ||
ग्रहो ग्रहं यदा हन्यात् प्रविशेद् वा भयं तदा । दक्षिण: सर्वभूतानामुत्तरोऽण्डज पक्षिणाम् ॥ २८ ॥
( यदा) जब ( ग्रहो ग्रहं हन्यात् ) ग्रहों का ग्रहों के साथ युद्ध हो वा (प्रविशेद्) प्रवेश करे ( दक्षिणसर्वभूतानां ) वो भी दक्षिण से तो सभी प्राणियों को (मुत्तरोऽण्डजपक्षिणाम् ) और उत्तर के अण्डज पक्षियों का घात करता है।