Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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वा) दो या बहुत ग्रह घात करे तो (तदा) तब (अपग्रहं विन्द्याद्) अपग्रह जानो, (भयं वाऽपि न संशयः) वहाँ भय होगा इसमें सन्देह नहीं है।
भावार्थ-रोहिणी नक्षत्र का एक ग्रह या दो या बहुत घात करे तो अपग्रह जानो वहाँ पर भय होगा इसमें सन्देह नहीं हैं। ३२ ।।
शक्रः शानिकाशः स्यादीषत्पीतो वृहस्पतिः। प्रवाल सहशो भौमो बुधस्त्वरुणसन्निभः॥३३॥ शनैश्चरश्च नीलाभः सोमः पाण्डुर उच्यते।
बहुवर्णो रविः केतू राहुनक्षत्र एव च ॥३४॥
(शुक्र शंख निकाशः) शुक्र शंख का वर्ण (स्यादीषत्पीतो वृहस्पतिः) गुरु पीले वर्ण का (शनौश्चरश्च नीलाभ:) शनि नीली आभा वाला (सोमपाण्डुर उच्यते) सोम पाण्डु वर्ण वाला कहा गया है। बहुवर्णो गति केत) पति और केतु बहु वर्ण वाला हो तो (राहु नक्षत्र एव च) उसी प्रकार राहु नक्षत्र होता है।
भावार्थ-शुक्र का रंग शंख वर्ण का गुरु का पीला, मंगल का प्रवाल के समान, बुध का वरुण रंग का शनि नीला, सोम पाण्डु बहु वर्गों का रवि और केतु है उसी प्रकार और नक्षत्र होते है। ३३-२४॥
उदकस्य प्रभुः शुक्रः सस्यस्य च बृहस्पतिः। लोहितः सुख दुःखस्य केतु पुष्प फलस्य च ॥३५॥ बुधस्तु बल वित्तानां सर्वस्य च रविः स्मृतः।
उदकानां च वल्लीनां शशाङ्कः प्रभुरुच्यते॥३६॥ (उदकस्य प्रभुः शुक्रः) जल का स्वामी शुक्र है (सस्यस्य च वृहस्पति:) धान्य का स्वामी गुरु है (बुधस्तु बलवित्तानां) बल, धन का स्वामी बुध है (लोहितः सुख दुःखस्य) मंगल सुख और दुःख का स्वामी है (केतुः पुष्प फलस्य च) केतु पुष्प और फलों का स्वामी है (सर्वस्य च रवि स्मृतः) सभी वस्तुओं का स्वामी सूर्य है (उदकानां च वल्लीनां) पानी और लताओं का स्वामी (शशाचः प्रभुरुच्यते) चन्द्रमा है वह उसका प्रभू है।
भावार्थ-जल का स्वामी शुक्र है धान्यों का स्वामी गुरु है बल धन का