Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्विंशतितमोऽध्यायः
नागरिकों को महान भय होगा, (एवं यायि वधे ज्ञेयं) इसी प्रकार यायि के घातित होने पर जानो (यायिनां तन्महद्भयम्) आक्रमकों को महान् भय होगा।
भावार्थ-नागर संज्ञा वाले ग्रहों का घात हो तो नागरिकों को महान् भय होगा, और यायि संज्ञकों का घात हो तो यायि (आक्रमणकारी) को महान् भय होगा॥७॥
हस्वो विवों रूक्षश्चश्यामः कान्तोऽपसव्यगः ।
विरश्मिश्चाप्य रश्मिश्च हतो ज्ञेयो ग्रहो युधि॥८॥
यदि (ग्रहो युधि) ग्रहों के युद्ध मे समय (हस्वो) ह्रस्व (विवर्णो) विवर्ण (रूक्षश्च) रूक्ष और (श्यामः) काला (कान्तोऽपसव्यगः) कान्त, अपसव्य दिशा में रहने वाला (विरश्मिश्चाप्य रश्मिश्च) रश्मि या अल्परश्मि वाला (हतो) पातित हो तो पराजय और हानि कारक है।
भावार्थ-ग्रह युद्ध के समय हस्व, विवर्ण, रूक्ष, काला, कान्त विरश्मि या अल्प रश्मि वाला अपसव्य दिशा में रहने पर घातित हो तो जय पराजय का कारण है॥८॥
स्थूलः स्निग्धः सुवर्णश्च सुरश्मिश्च प्रदक्षिणः ।।
उपरिष्टात् प्रकृतिमान् ग्रहो जयति तादृशः॥९॥ (स्थूल: स्निग्धः सुवर्णश्च) स्थूल स्निग्ध और सुवर्ण (सुरश्मि प्रदक्षिण:) सुरश्मि वाला प्रदक्षिणा करता हुआ (उपरिष्टात् प्रकृतिमानग्रहो) ऊपरको उठता हुआ ग्रह (ताहश: जयति) उसी प्रकार की जय कराता है।
भावार्थ स्थूल, स्निग्ध, सुवर्ण, सुरश्मि वाला प्रदक्षिणा करता हुआ ऊपर उठता हुआ ग्रह हो तो समझो उसी प्रकार जय कराता है।। ९॥
उल्कादयो हतान् हन्यु गरान् संयुगे ग्रहान् ।
नागराणां तदा विद्याद्भयं घोरमुपस्थितम्॥१०॥ जब युद्ध में (नागरान् ग्रहान्) नगर ग्रहों का (उल्कादयो) उल्कादि के (संयुगे हन्युरहतान्) द्वारा दोनों के घातित होने पर (तदा) तब (नागराणां) नगर निवासीयों को (घोरं भयं उपस्थितम् विद्याद) घोर भय उपस्थित होगा ऐसा जानो।