Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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कृष्णो नीलश्च श्यामश्च कपोतो भस्म सनिमः।
वर्णास्तु यायिनो ज्ञेया ग्रहयुद्धे विपश्चितैः॥४॥ (कृष्णोनीलश्च श्यामश्च) काला, नीला, श्याम, (कपोतो भस्मसन्निभः) कपोत भस्म (वर्णास्तु) वर्ण के समान (ग्रहयुद्धेविपश्चितैः) ग्रह युद्ध में विद्वानों ने (यायिनोज्ञेया) यायिसंज्ञा कहा।
भावार्थ-ग्रहयुद्ध में विद्वानों ने काला, नीला, श्याम, कपोत, भस्म, वर्णके समान यायि संज्ञा कहा है।॥४॥
उल्का ताराऽशनिश्चैव विद्युतोऽभ्राणि मारुतः।
विमिश्रको गणो ज्ञेयो वधायैव शुभाशुभे॥५॥ (उल्का ताराऽशनिश्चैव) उल्का, तारा, अशनि और (विद्युतोऽभ्राणि) विद्युत, बादल, हवा (विमिश्रको गणो ज्ञेयो) मिश्रकोणक जानना चाहिये (वधायैव शुभाशुभे) युद्ध के लिये शुभाशुभ फलमें ये वधकारक होते हैं।
भावार्थ-ग्रहयुद्ध के लिये शुभाशुभ फल में वध कारक, उल्का, तारा, अशनि, धिण्य, विद्युत अभ्र और मारुत को मिश्रकोण का जानना चाहिये। इसकी संज्ञा विमिश्र है॥५॥
नागरस्यापि यः शीघ्रः स यायीत्यभिधीयते।
मन्दगो यायिनोऽधस्तानागरः संयुगे भवेत्॥६॥ (नागरस्यापि यः शीघ्रः) नगर में जो शीघ्र गामी होता है (स) उसे (यायीत्यभिधीयते) यायि कहते हैं इस प्रकार (यायितो) यायि की अपेक्षा (अधस्तानागरः) अधस्त: नागर (संयुगे) नीच कोटी का (मन्द्रगो) मन्द (भवेत्) होता है।
भावार्थ-नगर में जो शीघ्र गामी है, उसे यायि कहते हैं और यायी की अपेक्षा नीच नागर मन्द होता है।।६।।
नागरे तु हते विन्द्यान्नागराणां महद्भयम्।
एवं यायि वधे ज्ञेयं यायिनां तन्महद्भयम्॥७॥ (नागरे तु हते विन्द्याद्) नगर संज्ञकों के युद्ध होने पर जानना चाहिये कि