Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अयोविंशतितमोऽध्यायः
अर्धमासं यदा चंद्र ग्रहा यान्ति विदक्षिणम्।।
तदा चन्द्रो जयं कुर्यान्नागरस्य महीपतेः ॥५५॥ (यदा चन्द्रे) जब चन्द्रमा (अर्घमासं) आधे महीने में हो (ग्रहायान्ति विदक्षिणा) और अन्य ग्रह दक्षिण की ओर गमन करे तो (तदा) तब (चन्द्रो) चन्द्रमा (नगरस्य महीपतेः जयं कुर्यात) नगर के राजा की जय कराता है। भावार्थ-जब चन्द्रमा आधे संसार में हो और
अ कि इनमें गमन करे तो वह चन्द्रमा नगर के राजा की जय कराता है॥ ५५ ॥
हीयमानं यदा चन्द्र ग्रहाः कुर्वन्ति वामतः।
तदा विजयमाख्यान्ति नागरस्यमहीपतेः॥५६॥ (यदा चन्द्र) जब चन्द्रमा (हीयमानं) हीयमान हो रहा हो (ग्रहाः वामतः कुर्वन्ति) और अन्य ग्रह वाम भाग से गमन करे तो (तदा) तब (नागरस्य) नगर के (महीपतेः) राजा की (विजयमाख्यान्ति) विजय कराता है ऐसा कहे।
भावार्थ-जब चन्द्रमा हीयमान हो रहा हो तब अन्य ग्रह वाम भाग में गमन करे तो समझो नगर के राजा की विजय कराता है।। ५६॥
गतिमार्गा कति वर्ण मण्डलान्यपि वीथयः।
चारं नक्षत्रचारांश्च ग्रहाणां शुक्रवद् विदुः॥५७॥ (ग्रहाणां) ग्रहों की (गति) गति, (मार्गा) मार्ग, (कृति) कृति (वर्ण) वर्ण (मण्डलान्यपि वीथयः) मण्डल, वीथि और भी (चार) संचार (नक्षत्रचारांश्च) नक्षत्रों का संचार (शुक्रवद् विदुः) शुक्र के समान ही जानना चाहिये।
भावार्थ-ग्रहों की गति, मार्ग, कृति, वर्ण, मण्ड, वीथि, संचार नक्षत्र संचार सभी शुक्र के समान ही समझना चाहिये॥५७॥
चन्द्रस्य चारं चरतोऽन्तरिक्षे सुचारदुश्चारसमं प्रचारम्।
चर्यायुतः खेचरसुप्रणीतं यो वेद भिक्षुः स चरेनृपाणाम् ।।५८॥ (चन्द्रस्य) चन्द्र के (चारंचरतोऽन्तरिक्षे) आकाश में विचरण करने पर