Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
ર૮
भावार्थ-पूर्णिमा या अमावस्या को सूर्य या चन्द्र में इस प्रकार के चिह्न दिखलाई पड़े तो समझो की राहुका आगमन होने वाला है। ऐसी स्थिति में कोई विकार नहीं होगा॥२०॥
शेषमौत्पादिकं प्रोक्तं विधान भास्करं प्रति।
ग्रहयुद्धे प्रवक्ष्यामि सर्वगत्या च साधयेत्॥२१॥ (शेषमौत्पादिकं प्रोक्तं) शेष उत्पादिक कहा (भास्करं प्रति विधानं) सूर्य का विधान अब मैं (ग्रहयुद्धे प्रवक्ष्यामि) गृह युद्ध का स्वरूप वर्णन करता हूँ। (सर्वगत्या च साधयेत्) उसकी सिद्धि गति आदि से कर लेनी चाहिये।
भावार्थ-शेष लक्षण उत्पादिक है अब मैं ग्रह युद्ध का वर्णन करता हूँ उस की सिद्धि माति आदि से कर जो याहि ॥२६॥
विशेष वर्णन—इस अध्याय में आचार्य सभी ग्रहों का स्वामी सूर्य के उदय अस्त व संचार का वर्णन करते हैं।
___ यह सूर्य अनेक वर्ण वाला होकर उदय अस्त होता है। और उसी के अनुसार शुभाशुभ फल देता है। यह पूरा ध्यान रखना चाहिये कि सूर्य उदय के समय में उसका कौनसा वर्ण है और अस्त होने के समय में उसका कैसा वर्ण है। ज्योतिषी को इसका ज्ञान रखना चाहिये।
नक्षत्रोंके अनुसार भी सूर्य के संचारानुसार फलादेश होते हैं। सूर्य की संक्रान्तियों के अनुसार फलादेश भी कहा है।
चन्द्रनक्षत्र और सूर्य नक्षत्र के चौदह नक्षत्र है, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा और मघा में १४ नक्षत्र चन्द्र नक्षत्र है।
पूर्वाभाद्रपद, शतभिखा, मृगशिरा, रोहिणी, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल में १३ नक्षत्र सूर्य नक्षत्र कहलाते
__ आचार्य श्री कहते हैं कि सूर्य नक्षत्रों में यदि चन्द्रमा और चन्द्र नक्षत्रों में सूर्य हो तो वर्षा आती है।