Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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ग्यारहवींको मंगलवार और बारहवीं संक्रान्ति को बुधवार होता खर्पर योग हो तो है। इस योगके होने से भी धन-धान्य और जीव-जन्तुओंका विनाश होता है। यदि कार्त्तिक में वृश्चिककी संक्रान्ति रविवारी हो तो श्वेत रंगके पदार्थ महँगे, म्लेच्छों में रोग - विपत्ति एवं व्यापारी वर्गके व्यक्तियोंको भी कष्ट होता है। चैत्र मास में मेषकी संक्रान्ति मंगल या शनिवार की हो तो अन्न का भाव तेज, गेहूँ, चने जौ आदि समस्त धान्यका भाव तेज होता है। सूर्यका क्रूर ग्रहोंके साथ रहना, या क्रूर ग्रहोंसे विद्ध रहना अथवा क्रूर ग्रहोंके साथ सूर्यका वेध होना, वर्षा, फसल, धान्योत्पत्ति आदिके लिए अशुभ है। सूर्य यदि मृदु संज्ञक नक्षत्रोंको भोग कर रहा हो, उस समय किसी शुभ ग्रहकी दृष्टि सूर्यपर हो तो, इस प्रकार की संक्रान्ति जगत् में उथल-पुथल करती है। सुभिक्ष और वर्षाके लिए यह योग उत्तम है। यद्यपि संक्रान्ति मात्रके विचार उत्तम फल नहीं घटता है, अतः ग्रहोंका सभी दृष्टिंसे विचार करना आवश्यक है।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का सूर्य संचार व फलादेश का वर्णन करने वाला बाईसवें अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद की क्षेमोदय टीका समाप्त ।
(इति द्वाविंशतितमोऽध्यायः समाप्तः )