Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
+
T
त्रयोविंशतितमोऽध्यायः
उडू, (मद्रांश्च) मद्र और (दविडांस्तथा ) द्रविड देश तथा (शूद्रान्) शूद्रों को (महासनान्) महासन को (वृत्यान्) वृत्यो को (समस्तान् ) समस्नान (सिन्धुसागरान् ) समुद्र, सागर ( आनर्त्तान्मलकीरांश्च) आनर्त, मल, किरात, ( कोणान् ) कोंकण (प्रलम्बिनः) प्रलयम्बिन (रोमवृत्तान्) रोमवृत (पुलिन्द्राश्च ) पुलिन्द्र ( मारुश्वभ्रं च कच्छजानू ) मरूभूमि, कच्छवासी ( एतान् देशान् प्रायेण हिंसत् ) इतने देश वासियों का प्रायेण हिंसा करता है (समेने च विद्वेष्टी ) अगर सम श्रृंग हो तो (तथा यात्रां न योजयेत् ) यात्रा नहीं करनी चाहिये।
६३५
भावार्थ—दपि वही बद्रमा स्थूल रूप हो तो, शबर, दण्डक, उडू, मद्र, द्रविड, शूद्र, महासन्, नृत्य, समस्त समुद्र, सागर, आनर्त, मल, किरात, कोंकण, रोम, पुलिन्द्र, मरु, कच्छ इतने देशवासियों की प्रायः हिंसा होती है। अगर सम भृंग हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिये, ऐसी स्थिति में यात्रा का निषेध किया है ॥ ६-७-८ ॥
चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी विवर्णो विकृतः शशी । यदा मध्येन वा याति पार्थिवं हन्ति
मालवम् ॥ ९ ॥ ( यदा) जब ( चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी) चतुर्थी, पञ्चमी और षष्ठी तिथि को (शशी) चन्द्रमा ( विवर्णो विकृतः ) विवर्ण और विकृत दिखे (वा) वा ( मध्येन् याति) मध्य से गमन करे तो ( पार्थिवं मालवम् हन्ति ) मालवा नरेश का नाश करता है।
'भावार्थ — जब चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी का चन्द्रमा विवर्ण और विकृत दिखे मध्य से गमन करे तब मालव नरेश को मारता है । याने चन्द्रमा ऐसा सूचित कर रहा है कि मालव नरेश का मरण होगा ॥ ९ ॥
काञ्च किरातान् द्रमिलान् शाक्यान् लुब्धांस्तु सप्तमी ।
कुमारं युवराजनञ्च चन्द्रो हन्यात् तथाऽष्टमी ॥ १० ॥
( तथाऽष्टमी सप्तमी चन्द्रो) जब अष्टमी व सप्तमी का चन्द्रमा उसी प्रकार हो तो ( काञ्ची) कांची, (किरातान् ) किरात् (द्रमिलान् ) द्रविड ( शाक्यान्) शाक्य (लुब्धांस्तु) लुब्धक और (कुमारं युवराजानञ्च हन्यात्) राजकुमार को मारता है। भावार्थ- जब अष्टमी या सप्तमी का चन्द्रमा उसी प्रकार हो, तो किरात द्रमिल, शाक्य, लुब्धक और राजकुमार को मारता है ।। १० ।।