Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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नयोविंशतितमोऽध्यायः
भार्गव: गुरवः प्राप्तो पुष्यभिश्चित्रया सह।
शकस्य चापरूपं च ब्रह्माणसदृशं फलम्॥४०॥ (शकस्य) यदि इन्द्र (चापरूप) धनुष के समान सुन्दर चन्द्रमा (पुष्यभिश्चित्रयासह) पुष्य और चित्रा के साथ (भार्गव: गुरुवः प्राप्तो) शुक्र और गुरु के साथ प्राप्त होता है, तो (ब्राह्माण सदृशं फलम्) ब्राह्मणों के समान फल होता है।
भावार्थ-यदि इन्द्र धनु के समान सुन्दर चन्द्रमा पुष्य और चित्रा के साथ गुरु शुक्र को प्राप्त होता है, तो समझो ब्राह्मणों के समान फल होता है।। ४० ।।
क्षत्रियाश्च भुविख्याता: कौशाम्बी दैवतान्य पि।
पीड्यन्ते तद् भक्ताश्च सङ्ग्रामाश्च गुरोर्वधः ॥४१॥ उपर्युक्त प्रकार के चन्द्र में (क्षत्रियाश्च भू विख्याता:) भूमि के प्रसिद्ध क्षत्रिय (कौशाम्बी दैवतान्यपि) कौशाम्बी देश के देवता (तद् भक्ताश्च) और उनके भक्तों (संग्रामाश्च गुरोर्वधः) को पीड़ा होती है और गुरुओं का वध होता है।
भावार्थ- उपर्युक्त चन्द्रमा की चाल होने पर भूमि के प्रसिद्ध क्षत्रिय कौशाम्बी के देवता व उनके भक्तों को पीड़ा होती है, युद्ध होता है, गुरुओं की भी हिंसा होती है॥४१॥
पशवः पक्षिणो वैधा महिषाः शबराः शकाः । सिंहला द्रामिला: काचा बन्धुकाः पहवा नृपाः॥४२॥ पुलिन्द्राः कोंकणा भोजाः कुरु वो दस्यवः क्षमाः।
शनैश्चरस्य घातेन पीड्यन्ते यवनैः सह ।। ४३॥ चन्द्रमा के द्वारा (शनैश्चरस्य घातेन) शनि का घात होने पर (यवैन: सह) यवनों के साथ (पशव: पक्षिणो) पशु, पक्षी, (वैद्या) वैद्य, (महिषा:) भैंसे (शबरा) शबर (शका:) शक (सिंहला) सिंहल (द्रामिला:) द्रमिल (काचा) काचा (बन्धुका:) बन्धुक (पहवा) पल्लव देश (नृपाः) के राजा (पुलिन्द्रा) पुलिन्द्र (कोंकणा:) कोंकण (भोजाः) भोज (कुरुवो) कुरु (दस्यवः क्षमा:) चोर क्षमा (पीड्यन्ते) पीड़ित होते