Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोविंशतितमोऽध्यायः
चन्द्रमा का संचार वर्णन मासे मासे समुत्थानं चन्द्रं यो पश्येत् बुद्धिमान् ।
वर्ण संस्थानरात्री तु ततो ब्रूयात् शुभा शुभम् ॥१॥ (ये) जो (बुद्धिमान) बुद्धिमान (मासे मासेसमुत्थानं चन्द्रं पश्येत) प्रत्येक मास में उठकर चन्द्र को देखता हूँ, और (वर्ण संस्थान रात्रौतु) रात्रि में वर्ण संस्थान है। (ततो) उसका (शुभा शुभम् ब्रूयात्) शुभाशुभ को कहूँगा।
भावार्थ-जो बुद्धिमान प्रत्येक महीने उठकर चन्द्र को देखता है। और वर्ण संस्थान देखता है, उसके शुभाशुभ को कहूंगा॥१॥
स्निग्धः श्वेतो विशालश्च पवित्रश्चन्द्रः शस्यते।
किञ्चिदुत्तरशृङ्गश्च दस्यून हन्यात् प्रदक्षिणम् ।।२।। (चन्द्रः) चन्द्र (स्निग्धः) स्निग्ध हो (श्वेतो) श्वेत हो (विशालश्च) विशाल हो और (पवित्र) पवित्र हो तो (शस्यते) प्रशस्त माना है। किन्तु उसका (किञ्चिदुत्तर शृंगश्च) किनारा थोड़ा उत्तर की ओर उठा हुआ हो तो (प्रदक्षिणम् दस्यून हन्यात्) प्रदक्षिण में डाकूओं का घात करता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा स्निग्ध हो श्वेत हो विशाल हो पवित्र हो तो प्रशस्त माना है। किन्तु उसका शृंग उत्तर की ओर थोड़ा उठा हुआ हो तो डाकूओं का घात करता है॥२॥
अश्मकान् भरतानुड़ान् काशि कलिङ्ग मालवान्।
दक्षिणद्वीप वासांश्च हन्यादुत्तर शृंगवान् ॥३॥ यदि चन्द्रमा की (उत्तर शृंगवान्) शिखा उत्तर की तरफ हो तो (अश्मकान्) अस्मक (भरतानुड्रान्) भरत उडू (काशि) काशी (कलिगमालवान) कलिंग मालव (दक्षिणदीपवासांश्च) और दक्षिण द्वीप के वासियों को (हन्याद्) मारता हैं।