Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
६३८
अशुभ ( ग्रहः ) ग्रह ( प्रविशते ) प्रवेश करता है तब (तत्र) वहाँ पर (सप्तराष्ट्र विनाशनः) सात राष्ट्र को बिनाश रूप (संग्रामो जायते) संग्राम होता है।
भावार्थ — यदि प्रतिपदा का चन्द्रमा अन्य अशुभ ग्रहों में प्रवेश करे तो वहाँ पर सात देशें का संग्राम में नाश होता है ॥ १७॥
तृतीयायां
गर्भनाशाय
कल्पते ।
द्वितीयायां चतुर्थ्यां च सुघाती च मन्दवृष्टि ञ्च निर्दिशेत् ॥ १८ ॥ (द्वितीयां तृतीयायां द्वितीया का तृतीया का चन्द्रमा (गर्भ नाशाय कल्पते) गर्भ नाश के लिये कारण बनता है (चतुर्थ्यां च सुषाती च) चतुर्थी तिथि में प्रवेश कर घात करे तो समझो (मन्द वृष्टि ञ्च निर्दिशेत् ) थोड़ी वर्षा होगी।
भावार्थ– द्वितीया तृतीया का चन्द्रमा को अन्य नक्षत्र घात करे, तो समझो गर्भनाश होगा, चतुर्थी का चन्द्रमा उसी प्रकार हो तो थोड़ी वर्षा होती है ॥ १८ ॥
पञ्चम्यां ब्राह्मणान् सिद्धान् दीक्षितांश्चापि पीडयेत् ।
यवनाय धर्मभ्रष्टाय षष्ठ्यां पीडां व्रजन्त्यतः ॥ १९ ॥ (पञ्चम्यां ब्राह्मणान् सिद्धान् ) पंचमी का घातक चन्द्रमा ब्राह्मणों का व सिद्ध पुरुषों का ( दीक्षितांश्चापिपीडयेत् ) व साधुओं को पीडा करता है (षष्ठ्यां) षष्ठी का चन्द्रमा भी उपर्युक्त स्थिति में हो तो ( यवनाय धर्मभ्रष्टाय ) यवनों को व धर्मभ्रष्टों को ( पीड़ां ब्रजन्त्यतः ) पीड़ा होती है ।
भावार्थ — पंचमी का चन्द्रमा ऊपर कहे अनुसार हो तो ब्राह्मणों का घात व सिद्धों का घात व साधुओं का घात करता है । षष्ठी का चन्द्रमा भी वैसा हा हो तो यवनों व धर्म भ्रष्टों को पीड़ा पहुँचाता है ॥ १९ ॥
महाजनाश्च
पीडयन्ते क्षिप्रमैक्षुरकास्तथा । तयश्चापि जायन्ते सप्तम्यां सोमपीडने ॥ २० ॥
यदि (सप्तमां) सप्तमी को (सोमपीडने ) चन्द्रमा के घाती होने पर (महाजनाश्चपीड्यन्ते) महाधनिक पीडा को प्राप्त होते हैं, (क्षिप्रमैक्षुरकास्तथा) नाई, धोबी, कृषकों को पीड़ा होती है (ईतयश्चापि ) बहुत रोग फैलता है।