Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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नवमी मन्त्रिपरनारमा लगान् हनिभान्।
दशमी स्थविरान् हन्यात् तथा वै पार्थिवान् प्रियान् ॥११॥ (नवमी मन्त्रिणश्चौरान्) नवमी का विकृत चन्द्रमा मन्त्री और चोरों का व (ऊर्ध्वगान् वर सन्निभान्) पथि अन्य श्रेष्ठ लोगों का घातक है (दशमी स्थविरान् दशमी विकृत चन्द्रमा स्थाविर (तथा वै पार्थिवान् प्रियान् हन्यात्) राजा व उनके प्रियों का नाश करता है।
भावार्थ-नवमी का विकृत चन्द्रमा मन्त्री, चोर, राजा व उनके प्रियजनों का नाश करेगा, दशमी का विकृत चन्द्रमा स्थाविर राजा व उनके प्रियों का नाश करता है।। ११॥
एकादशीभयं कुर्यात् ग्रामीणांश्च तथा गवाम्।
द्वादशी राजपुरुषांश्च वस्त्रं सस्यं च पीड़येत्॥१२॥ (एकादशी भयं कुर्यात्) एकादशी का विकृत चन्द्रमा भय करता है (ग्रामीणांश्च तथा गवाम्) ग्रामवासी और गार्यों को भय करता है, (द्वादशी राजपुरुषांश्च वस्त्रं सस्यं च पीडयेत) द्वादशी का चन्द्रमा राजपुरुषों का वस्त्र और धान्यों को पीड़ा करता है।
भावार्थ-एकादशी का विकृत चन्द्रमा ग्रामीणों को व गायों को भय करता है। द्वादशी का विकृत चन्द्रमा राजपुरुष व वस्त्र और धान्यों का नाश करता है॥१२॥
त्रयोदशी चतुर्दश्योर्भयं शस्त्रं च मूर्च्छति।
संग्रामः संभ्रमश्चैव जायते वर्णसङ्करः ।। १३॥ (त्रयोदशी चतुर्दश्योर्भयं) त्रयोदशी और चतुर्दशी दोनों तिथि का विकृत चन्द्रमा (शस्त्रं च मूर्च्छति) शस्त्र भय और मूर्छा करता है (संग्रामः संभ्रमश्चैव संग्राम होता है, लोग भ्रम में पड़ते है (वर्ण सङ्कर: जायते) वर्ण संकर बढ़ जाते है।
भावार्थ-त्रयोदशी व चतुर्दशी का चन्द्रमा अगर विकृत हो तो शस्त्र भय मूर्छा संग्राम भ्रम और वर्णसङ्करता बढ़ती है॥१३ ।।।
नृपा भृत्वैर्विरुध्यन्ते राष्ट्र चौरेविलुण्ठ्यते। पूर्णिमायां हते चन्द्रे ऋक्षे वा विकृतप्रभे॥१४॥