Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ चन्द्रमा के विपरीत होने पर सब जीवों को एक महीने में ही भय उत्पन्न होता है, धान्यों की वृद्धि होती है, अच्छी वर्षा होती है॥ २३ ॥ पुष्ययोः सोमः श्रीमानुत्तरगो महावर्षाणि कल्पन्ते सदा कृतयुगे
रेवती
यदा ।
यथा ।। २४ ।
( यदा सोमः ) जब चन्द्रमा (रेवती पुष्ययोः) रेवती पुष्यमें (श्रीमानुत्तरगो) उत्तर दिशा में गमन करे तो ( तदा) तब ( यथा ) यथा जैसे ( कृतयुगं ) कृत युग के समान ( महावर्षाणि कल्पन्ते) महान् वर्षा होती है।
वैश्वानरपथं
भावार्थ — जब चन्द्रमा रेवती पुष्य नक्षत्र में उत्तर दिशा में गमन करे तो कृतयुग के समान महान वर्षा होती है ॥ २४ ॥
वा
गोवीथीमजवीथीं विवर्ण:
सेवतेचन्द्रस्तदाऽल्पमुदकं
(गरीबीमजी वा) यो
अवधि ( वैश्वानरपथं तथा ) वैश्वानरपद पथ में यदि (चन्द्र) चन्द्र (विवर्ण: सेवते ) विवर्ण दिखे (तदा) तब (अल्पमुदकं भवेत् ) थोड़े पानी की वर्षा होती है।
भावार्थ — गोवीथि या अजवीथि व वैश्वानर में यदि चन्द्रमा विवर्ण दिखे तो थोड़े पानी की वर्षा होती है ।। २५ ।।
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तथा ।
भवत् ॥ २५ ॥
गजवीथ्यां नागवीथ्यां
च।
सुभिक्षं क्षेममेव सुप्रभे प्रकृतिस्थे च महावर्ष च निर्दिशेत् ॥ २६ ॥
वैश्वानरपथं प्राप्ते चतुरङ्गस्तु सोमो विनाशकृल्लोके तदा वाऽग्नि
जब (सुप्रभे) सुप्रभ ( प्रकृतिस्थे ) प्रकृतिस्थ चन्द्रमा (गजवीध्यां नागवीथ्यां गज वीथि अथवा नागवीथि में हो तो (सुभिक्षं क्षेम मेव च ) सुभिक्ष और क्षेम होगा ( महावर्षं च निर्दिशेत्) महावर्षा का निर्देशन करना चाहिये ।
भावार्थ-जब सुप्रभ प्रकृति स्थित चन्द्रमा गज वीथि व नागवीथि में हो तो सुभिक्ष और क्षेम होगा वर्षा भी महावर्षा में परिणत होगी ॥ २६ ॥
दृश्यते । भयङ्करः ॥ २७ ॥