Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
( कुटिल : ) कुटिल (कड्वखिलङ्ग) कड्वाखिलन (कुचित्रगो) कुचित्रग ( अथनिश्चयी) इत्यादि ( नामानि ) नाम ( लिखितानि) मात्र लिखे हैं (च येषां नोक्तं तु लक्षणम् ) किन्तु उनके लक्षण यहाँ पर नहीं लिखे हैं ।
भावार्थ — कुटिल कड्वखिल
हैं किन्तु उनका लक्षण यहाँ पर नहीं लिखे हैं ।। ५२ ॥
विग इत्यादि यहाँ पर नाम मात्र लिखे
गोपुरेऽहालके गृहे ।
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येन्तरिक्षे जले भूभौ वस्त्राभरण शस्त्रेषु ते उत्पाता न
केवलः ॥ ५३ ॥
( येऽन्तरिक्षे ) जो केतु आकाश में (जले) जल में (भूमौ ) भूमि पर (गोपुरे) गोपुर में (अट्टालिके) अट्टालिकामें (गृहे ) गृह में (वस्त्राभरण शस्त्रेषु) वस्त्राभरण शस्त्रों पर (ते उत्पाता न केवलः) दिखे तो वो उत्पात नहीं करते हैं।
भावार्थ — जो केतु आकाशमें जल में भूमि में गोपुर में गृह में अट्टालिकामें व वस्त्राभरणी व शस्त्रों पर दिखे तो उत्पात नहीं करते हैं ॥ ५३ ॥
दीक्षितान् अर्हद्देवांश्च आचार्यांश्च तथा गुरून् । पूजयेच्छान्तिपुष्ट्यर्थं पापकेतु समुत्थिते ॥ ५४ ॥
(पापकेतु समुत्थिते ) जब पाप केतु के उपस्थित होने पर ( दीक्षितान् ) साधुओं की (अर्हदेवांश्च) अर्हत देवों की ( आचायश्चि) आचार्यों की (तथा) तथा ( गुरुन् ) गुरुओं की (पूजयेत् ) पूजा करनी चाहिये ( छांतिपुष्ट्यर्थ ) शान्ति और पुष्टि के लिये । भावार्थ — पापकेतु के उपस्थित होने पर साधुओंको अर्हत प्रभु की आचार्यों की गुरुओं की पूजा करनी चाहिये, शान्ति और पुष्टि के लिये ॥ ५४ ॥
नराः ।
पौरा जानपदा राजा श्रेणीनां प्रवराः पूजयेत् सर्वदानेन् पापकेतुः समुत्थिते ॥ ५५ ॥ (पापकेतुसमुत्थिते) पापकेतुके उदय होने पर (पौरा) नगरवासियोंको (जानपदा) जनपदों को (राजा) राजा को ( श्रेणीनां ) श्रेणियों को ( प्रवराः) ब्राह्मणोंको ( नरा ) मनुष्योंको (सर्वदानेन पूजयेत् ) दान, पूजा करनी चाहिये ।
भावार्थ — पापकेतु के उदय होने पर नगर वासियों को जनपदों को राजा
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