Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
६२१
एकविंशतितमोऽध्यायः
जितने दिनों तक ये दिखते हैं, उतने ही महीनों तक और जितने महीनों तक दिखें उतने ही वर्षों तक इनका फल मिलता है। जब वे दिखें तो उनके तीन पक्ष आगे फल देते हैं। जिन केतुओंकी शिखा उल्का से ताड़ित हो रही हो वे केतु हूण, अफगान, चीन और चोल से अन्यत्र देशों में श्रेयस्कर होते हैं। जो केतु शुक्ल, स्निग्धतनु, हस्व, प्रसन्न, थोड़े समय ही दिखने वाला सीधा हो और जिसके उदय होने से वृष्टि हुई हो वह शुभ फलदायी होता है।
चार प्रकारके भूकम्प ऐन्द्र, वारुण, वायव्य और आग्नेय होते हैं, इनका कारण भी राहु और केतुका विशेष योग ही है। जब राहु से सातवें मंगल, मंगल से पाँचवें बुध और बुध से चौथे चन्द्रमा होता है, उस समय भूकम्प होता है।
स्वाति, चित्रा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, मृगशिरा, अश्विनी, पुनर्वसु इन नक्षत्रों में अग्नि केतु या संवर्त केतु दिखलाई पड़े तो भूकम्प होता है। पुष्य, कृत्तिका, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और मघा इन नक्षत्रोंका आग्नेय मण्डल कहलाता है। जब कीलक या आग्नेय केतु इस मण्डल में दिखलाई देते हैं तो भूकम्प होनेका योग आता है। चल, जल, उर्भि, औद्दालक, पद्म और रविरश्मिकेतु जब प्रकाशमान होकर किसी भी मध्यरात्रि में उदित होते हैं, तो उसके तीन सप्ताह में भयकर भूकम्प पूर्वके देशों में तथा हल्का भूकम्प पश्चिमके देशों में आता है। वसाकेतु
और कपालकेतु यदि प्रतिपदा तिथिको रात्रिके प्रथम प्रहर में दिखलाई पड़े तो भी भूकम्प आता है। भूकम्पोंके प्रधान निमित्त केतुओंका उदय है। यों तो ग्रहयोग से गणित द्वारा भूकम्पका समय निकाला जाता है, किन्तु सर्वसाधारण केतुओंके उदयके निरीक्षण मात्र से आकाशदर्शन से ही भूकम्प का परिज्ञान कर सकता है।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का केतु उदय-अस्त अध्याय का वर्णन करने वाला इक्कीसवें अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त।
(इति एकविंशतितमोऽध्यायः समाप्तः)