Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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द्वाविंशतितमोऽध्यायः
(नृपाणां महितश्चापि ) राजाओं का अहित करेगा और भी (स्थावराणां च कीर्त्तितः ) स्थावरों का अहित करता है।
भावार्थ — सूर्य उदय होते समय यदि लाल वर्ण का हो, तो शस्त्र प्रकोप होगा, भय उत्पन्न होगा। वस्तुओं के भाव महँगे होंगे, स्थावर देशवासी राजाओं का अहित होगा ॥ ३ ॥
पीतो लोहित रश्मिश्च व्याधि मृत्युकरो रविः । विरश्मिर्धूमकृष्णाभः क्षुधार्त्तसृष्टिरोगदः ॥ ४ ॥
(रवि) सूर्य (रश्मिश्च) की किरणें (पीतो लोहित) लाल, पीली हो तो ( व्याधि मृत्युकरो ) रोग उत्पन्न करेगी व मरण लाएगी (विरश्मेिर्धूमकृष्णाभः ) अगर सूर्योदय की किरणें धूमवर्ण की हो व काली हो तो ( क्षुधार्त्त सृष्टि रोगदः) क्षुधा को बढ़ाएगी, और पृथ्वी रोग से सहित हो जायगी ।
भावार्थ — यदि सूर्योदय समय उसकी किरणें लाल, पीली हो तो व्याधि उत्पन्न करेगी, मरण करेगी और धूमवर्ण या काली हो तो भुखमरी फैलेगी, वा सृष्टि में रोग फैल जायगा ॥ ४ ॥
नोट —यहाँ जो भी कहा गया है। वह सूर्योदय के समय वाली किरणों को ही लेना है, उसी का शुभाशुभ होता है।
कबन्धेनाऽऽवृतः सूर्यो यदि दृश्येत प्राग् दिशि । बङ्गानङ्गान् कलिङ्गांश्च काशी कर्णाट मेखलान् ॥ ५ ॥ मागधान् कटकालांश्च काल वक्रोष्ट्रकर्णिकान् । माहेन्द्रसंवृतोवान्द्रास्तदा
हन्याच्च भास्करः ॥ ६॥
यदि (सूर्यो) सूर्य (प्राग् दिशि ) पूर्वदिशा में ( कबन्धेनाssवृतः ) धड़ से ढका हुआ दिखे तो (बाङ्गान् कलित्राश्च) अंग देश, बंग देश, कलिंग देश और (काशी कर्णाट मेखलान्) काशी देश, कर्नाटक देश, मेखला देश (मागधान् ) मगध देश . (कटकालांश्च) कटक ( काल वक्रोष्ट) काल व क्रोष्ट्र देश (कर्णिकान् ) कर्णिका देश (माहेन्द्र संवृतो वान्द्राः ) माहेन्द्र और उड़ देशों का ( तदा) तब वह ( भास्करः ) सूर्य (हन्याच्च) घात करता है।