Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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तक जाकर लौट आवे तो प्रजा का नाश होता है। जो केतु धूम्रवर्ण की चोटी से युक्त होकर कृत्तिका नक्षत्र को स्पर्श करे, उसको रश्मिकेतु कहते है, इसका फल श्वेत नामक केतु के समान है। ध्रुव नामक एक प्रकार का केतु है, इसका आकार, वर्ण, प्रमाण स्थिर नहीं हैं, यह दिव्य, अन्तरिक्ष और भौम तीन प्रकार का होता है। यह स्निग्ध और अनियत फल देता है। जिस केतु की कान्ति कुमुद के समान हो, चोटी पूर्व की ओर फैल रही हो, उसको कुमुदकेतु कहते हैं। यह बराबर दस वर्ष तक सुभिक्ष देने वाला है। जो केतु सूक्ष्म तारे के समान आकार वाला हो और पश्चिम दिशा में तीन घण्टों तक लगातार दिखलाई दे तो उसका नामक मणि केतु है। स्तन के ऊपर दबाव देने से जिस प्रकार दूध की धारा निकलती है, उसी प्रकार जिनकी किरणें छिटकती हैं, यह केतु उसी प्रकार की किरणों से युक्त है। इसके उदय से साढ़े चार मास तक सुभिक्ष होता है तथा छोटे-बड़े सभी प्राणियों को कष्ट होता है। जिस केतु की अन्य दिशाओं में ऊँची शिखाओं तथा पिछले भाग में चिकना हो वह जन केतु कहलाता है। इसके उदय होने से नौ महीने तक शान्ति और सुभिक्ष मिलती है। सिंह की पूँछ के समान दक्षिणावर्त शिखा वाला, स्निग्ध, सूक्ष्मतारायुक्त पूर्व दिशा में रात में दिखलाई देने वाला भवकेतु है। यह भवकेतु जितने मुहूर्त तक दिखलाई देता है, उतने मास तक सुभिक्ष होता है। यदि रूक्ष होता है, तब मरणान्त कराने वाला माना जाता है। फुव्वारे के समान किरण वाला, मृडाल के समान गौर वर्ण केतु पश्चिम दिशा में रातभर दिखलाई दे तो सात वर्ष तक हर्ष सहित सुभिक्ष होता है। जो केतु आधीरात्रि के समय तक शिखासव्य, अरुणकी-सी कान्ति वाला, चिकना दिखलाई देता है, उसे आवर्त कहते हैं, यह केतु जितने क्षण तक दिखलाई देता है, उतने मास तक सुभिक्ष रहता है। जो धूम्र या ताम्रवर्ण की शिखा वाला भयंकर है और आकाश के तीन भाग 'तक को आक्रमण करता हुआ शूल के अग्रभाग के समान आकार वाला होकर सन्ध्याकाल में पश्चिम की ओर दिखलाई दे तो उसको संवर्तकेतु कहते हैं। यह केतु जितने मुहूर्त तक दिखलाई देता है, उतने वर्षतक शस्त्राघात से जनताको कष्ट होता है। इस केतुके उदयकाल में जिसका जन्मनक्षत्र आक्रान्त रहता है, उसे भी कष्ट होता है। जिस-जिस नक्षत्रको केतु आधूमित करे या स्पर्श करे, उस-उस