Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाह संहिता
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एवं शेषान् ग्रहान् केतुर्यदा हन्यात् स्वरश्मिभिः ।
ग्रहयुद्धे यदा प्रोक्तं फलं तत्तु समादिशेत्॥३०॥ (यदा) जब (केतुः) केतु (स्वरश्मिभिः) अपनी किरणों द्वारा (एवं शेषान् ग्रहान्) इस प्रकार से बचे हुऐ ग्रहों का घात करे तो (ग्रहयुद्धे प्रोक्त) गृहयुद्ध कहना चाहिये (फलं तत्तु समादिशेत्) क्योंकि ऐसा ही कहा गया है।
भावार्थ-जब केतु अपनी किरणों से अन्य बचे हुऐ ग्रहोंका घात करे तो समझो गृहयुद्ध होगा क्योंकि अन्यत्र ऐसा ही कहा गया है।। ३०॥
नक्षत्रे पूर्व दिग्भागे शादा डः महामने।
तदा देशान् दिशामुग्रां भञ्जन्ते पापदा नृपाः ।। ३१ ।। (यदा केतुः) जब केतु (पूर्वादिग्भागे नक्षत्रे प्रदृश्यते) पूर्व दिशा के नक्षत्रमें दिखलाई पड़े तो (तदा) तब (पापदा नृपाः) पापी राजा (देशान्) देश (दिशामुग्रां) व दिशा इन सबका (भञ्जन्ते) धात होता है।
भावार्थ-जब केतु पूर्व दिशा के नक्षत्रों पर दिखे तो पापी राजा का व उसके देश व दिशा का घात होता है।। ३१ ।।
बङ्गानङ्गान् कलिङ्गांश्च मगधान् काशनन्दनान्। पट्टचावांश्च कौशाम्बी घेणुसारं सदाहवम् ।।३२।। तोसलिङ्गान् सुलान् नेद्रान् माक्रन्दामलदास्तथा। कुनटान् सिथलान् महिषान् माहेन्द्रं पूर्वदक्षिणः ।। ३३॥ वेणान् विदर्भमालांश्च अश्मकांश्चैव छर्वणान्। द्रविडान् वैदिकान् दाद्रेकलांश्च दक्षिणापथे।॥ ३४॥ कोणान् दण्डकान् भोजान् गोमान् सूर्यारकाञ्चनम्।
किष्किन्धान् वनवासांश्च लङ्कां हन्यात् स नैरुतैः ॥ ३५॥ उपर्युक्त केतु के रहन पर (बगानहान) बंगदेश, अंग देश (कलिङ्गांश्च) कलिंग और (मगधान्) मगध (काशनन्दनान्) काश, नन्द (पट्टचावांश्च) पट्ट और (कौशाम्बी) कौशाम्बी, (धेणुसार) घेणुसार आदि और भी (तोसलिङ्गान्) तोस,