Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
६०E
रामगान्धार (आभिरान्) आभीर (यवरच्छकान्) यवरच्छक (चैत्र सोत्रेयकान्) चैत्र, सोत्रेय, (सिन्ध) सिन्ध (महामन्ययुवायुजः) महामन्य युवायुज (बाहीकान्) बाह्रीक (वीन विषयान्) वीन विषय (पूर्वतांश्चप्यदुश्वरान्) पर्वत वासी, दुश्वर बोलने वाले (सौधेय) सौधेय, (कुरुवै देहान्) कुरु, वेदेह आदि देशों को (हन्यात) नाश करता
माई.-जा जतः दिप का हो तो काम्बोज, राम गान्धार, आभीर, यवरच्छ, चैत्रसौत्रेय, सिन्ध, महामन्य, युवा, युज, बालीक, वीन, विषय, पर्वतवासी, सोधेय, कुरु, विदेह आदिकों का घात करता है।३७-३८॥
चर्मा सवर्ण कलिङ्गान किरातान् बर्बरान् द्विजान्।
वैदिस्तमिपुलिन्दांश्च हन्ति स्वात्यां समुच्छ् ितः॥३९॥ (स्वात्यां समुच्छित:) स्वाति नक्षत्र में उदित केतु (चर्मा) चमार (सुवर्ण) स्वर्णकार (कलिङ्गान्) कलिग देश (किरातान्) किरात देश (बर्बरान्) बबर देश (द्विजान्) ब्राह्मण (वैदिस्तमि) वैदिक (पुलिन्दांश्च) पुलिन्द (हन्ति) मारता है।
भावार्थ-स्वाति नक्षत्र में उदित केतु, चर्मकारों को स्वर्णकारों को, कलिङ्ग देशवासियोंको, भीलोंका, बर्बरोंको, ब्राह्मणों को वैदिकों को पुलिन्दों को मारता है॥३९॥
सहशा: केतवो हन्युस्तासु मध्ये बथं वदेत् ।
व्याधि शस्त्रं क्षुधां मृत्यु परचक्रं च निर्दिशेत्॥४०॥ (सदृशाः केतवो हन्युः) सदृश केतु घात करता है तथा (स्तासुमध्ये) उनके अन्दर (बधंवदेत्) वध कराता है ऐसा कहे और (व्याधि) रोग, (शस्त्रं) शस्त्र (क्षुधां) भूख (मृत्यु) मरण (परचक्रं) और पर चक्र का भय करता है।
भावार्थ-सदृश केतु घात करता है और वध कराता है, रोग भय, शस्त्र भय, क्षुधाभय, मरणभय और परचक्र का भय कराता है।। ४०॥
न काले नियता केतुः न नक्षत्रादिकस्तथा।
आकस्मिको भवत्येव कदाचिदुदितो ग्रहः॥४१॥ (न कालेनियता केतुः) केतु के उदय का भी कोई काल नहीं (नक्षत्रादिकस्तथा)