Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकविंशतितमोऽध्यायः
केतो:समुत्थितः केतुरन्यो यदि च दृश्यते।
क्षु च्छस्त्ररोगविघ्नस्था प्रजा गच्छति संक्षयम्॥२०॥ (केतु समुत्थितःकेतु) केतु में से दूसरा केतु (रन्यो यदि च दृश्यते) दिखाई पड़े तो (क्षु च्छसस्त्ररोगविघ्नस्था) क्षुधारोग, शस्त्र प्रकोप ऐसे विघ्न आते हैं (प्रजा गच्छति संक्षयम्) प्रजा क्षय को प्राप्त होती है।
भावार्थ-यदि केतु के अन्दर से दूसरा केतु निकलता हुआ दिखाई पड़े तो क्षुधा रोग, शस्त्र प्रकोप आदि विघ्न होते है। और प्रजा क्षय को प्राप्त होती हैं।। २०॥
एते च केतवः सर्वे धूमकेतु समं फलम्।
विचार्य वीथिभिश्चापि प्रभाभिश्चविशेषतः ॥२१॥ (एते च केतव: सर्वे) इतने प्रकार के केतु सब (धूमकेतु समं फलम्) धूमकेतु के समान फल देते हैं (विशेषतः) तो भी विशेष कर (वीथिभिश्चापि) वीथि के अनुसार (प्रभाभिश्च) प्रभाके अनुसार (विचार्य) विचार करना चाहिये।
भावार्थ-उपर्युक्त सभी केतुओं का फल धूमकेतु के समान होता है। तो भी विथि' और प्रभा के अनुसार निमित्तज्ञानी को शुभाशुभ कहना चाहिये॥२१॥
यां दिशं केतवोऽर्चिभिधूमयान्ति दहन्ति च।
तां दिशं पीडयन्त्येते क्षुधायैः पीडनै शम्॥२२ ।। (या दिशं) जिस दिशा को (केतवो) केतु (अचिर्भिधूमयान्ति च दहन्ति) अग्नि के समान जलता है या धुऔं देता है (तां दिशं) उसी दिशा को (पीडयन्त्येते) पीडा देता हैं (क्षुधाद्यैः पीडनै शम्) और सुधारिक से ज्यादा पीड़ा पहुँचती है।
भावार्थ-जिस दिशा का केतु अग्निके समान जलता है या धुआँ देता है उसी दिशामें क्षुधादिरोग से पीड़ा पहुँचती है।। २२॥
नक्षत्रं यदि वा केतुर्ग्रहं वाऽप्यथ धूमयेत्।
तत: शस्त्रोप जीवीनां स्थावरं हिंसते ग्रहः ॥२३॥ (यदि केतु) यदि केतु किसी (नक्षत्रं वा ग्रह) नक्षन या ग्रह को (वाऽप्यथ