Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकविंशतितमोऽध्यायः
त्रिवर्णश्चन्द्रवद् वृत्तः समसर्पवङ्करः।
त्रिभिः शिरोभिः शिशिरोगुल्मकेतुः स उच्यते॥१४॥ (त्रिवर्णश्चन्द्रवद् वृत्त:) तीन वर्ण वाला चन्द्रमा के समान गोल केतु (समसर्पवदङ्कुरः) समसर्पवद्कर नाम का होता है (त्रिभिः शिरोभिः शिशिरो) तीन सिर वाला केतु को शिशिर कहलाता है और (गुल्मकेतुः स उच्यते) गुल्म के समान केतु गुल्म केतु कहलाता है।
भावार्थ-तीन वर्ण वाले चन्द्रमा के समान वृत (गोल) केतु को समसर्पवद्र कहते हैं। तीन सिर वाले केतु को शिशिरकेतु कहते हैं, और गुल्म के समान केतु को गुल्म कहते हैं।। १४॥
विक्रान्तस्य शिखेदीप्ते ऊर्ध्वगे च प्रकीर्तिते।
ऊर्ध्वमुण्डा शिखायस्य स खिली केतुरुच्यते॥१५॥
(यस्य) जिस केतुकी (शिखे) शिखा (ऊर्ध्वगे च) ऊपर की ओर हो , (दीप्ते) दीप्त हो (विक्रान्तस्यप्रकीर्तिते) उसको विक्रान्त संज्ञक कहते हैं, (ऊर्ध्वमुण्डाशिखा) जिसकी शिखा ऊपर की ओर हो उसको ऊर्ध्व मुण्डा कहते है और जिसकी (स खिली केतुरुच्यते) शिखा खुली हुई हो तो समझे उसको केतु संज्ञा कहते हैं।
भावार्थ—जिसकी शिखा ऊपर की ओर हो और जो भी दीप्त हो तो उसको विक्रान्त संज्ञा है, जिसकी शिखा मात्र ऊपर की ओर हो तो उसको ऊर्ध्व मुण्डा कहते हैं। जिसकी खुली हुई शिखा हो तो उसको केतु संज्ञा वाला कहते हैं ।। १५ ।।
शिखें विषाणषद् यस्य स विषाणी प्रकीर्तितः।
व्युच्छिद्यमानो भीतेन रूक्षा च क्षिलिकाशिखा॥१६॥ (यस्य) जिसकी (शिखे) शिखा (विषाणवद्) विषाण के समान हो (स) वह (विषाणि) विषाणी (प्रकीर्तितः) कहा है तथा (भीतेन) भयमे (रूक्षा च) रूक्ष
और (व्युच्छिद्यमानो) नष्ट होने वाला है उसको (क्षिलिका शिखा) क्षिलिका शिखा वाला केतु कहते हैं।