Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकविंशतितमोऽध्यायः
भावार्थ-केतु अंगारक और राहु धूम वर्ण का हो शुद्र हो तो जीवों को संशय होता है यात्रीयों के प्राण संकट में पड़ जाते हैं।॥७॥
त्रिशिरस्के द्विज भयम् अरुणे युद्धमुच्यते।
अरश्मिके नृपापायो विरुध्यन्ते परस्परम् ।।८॥ (त्रिशिरस्के द्विज भयम्) तीन सिर वाला केतु दिखे तो ब्राह्मणों को भय उत्पन्न होगा, (अरुणेयुद्धमुच्यते) लाल दिखे तो युद्ध होगा (अरश्मिके) किरणरहित दिखे तो (नृपापायोपरस्परम् विरुध्यन्ते) राजा और प्रजा का परस्पर में विरोध होता
भावार्थ-तीन सिर वाला केतु दिखे तो ब्राह्मणोंको भय उत्पन्न होगा, लाल दिखे तो युद्ध होगा, किरण रहित हो तो राजा और प्रजा में परस्पर विरोध होगा ।।८।।
विकृते विकृतं सर्व क्षीणे सर्वपराजयः ।
ने शिवध:पापः कबन्धे जनमृत्युदः॥९॥ रोगं सस्य विनाशञ्च दुस्कालो मृत्युविद्रवः।
मांस लोहितकं ज्ञेयं फलमेवं च पञ्चधा॥१०॥ (विकृते विकृतं सर्व) विकृत केतु दिखे तो सब विकृत होता है (क्षीणे सर्वपराजयः) क्षीण दिखे तो सब पराजय होते हैं (शृङ्गे शृषि वध:पाप:) पूंछ वाला होता, पाप बढ़ाने वाला होता है (कबन्धेजनमृत्युदः) अगर धड़ रहित दिखे तो मृत्यु देता है। (दुष्कालो मृत्यु विद्रवः) दुष्काल पड़ेगा, मरण का उपद्रव बढ़ेगा, (मांस लोहितकं ज्ञेयं) मासं और रक्त बहेगा ऐसा जानना चाहिये कि (फलंमेवं चपञ्चधरा) इस तरह पाँच प्रकार के फल मिलेंगे।
भावार्थ-यदि केतु विकृत दिखे तो विकृती करने वाला होता है, क्षीण दिखे तो सबको क्षीण करता है। पूंछ वाला दिखे तो पाप बढ़ाने वाला और धड़ रहित दिखे तो मृत्यु लाने वाला होता है। रोग उत्पन्न होगा, धान्यों का नाश होगा, दुष्काल पड़ेगा मरण भय हो जायगा, मांस और रुधिर युद्ध में बहेगे ऐसे पाँच फल उपर्युक्त केतु के होने पर होंगे॥९-१०॥