Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता ।
शतानि चैव केतूनां प्रवक्ष्यामि पृथक् पृथक् ।
उत्पाता यादृशा उक्ताग्रहास्तमनान्यपि।। ४॥ (शतानि चैव केतनां) सौ केतुओं का वर्णन (पृथक पृथक् प्रवक्ष्यामि) अलग-अलग कहूँगा (ग्रहास्तमनान्यपि) ग्रहों के अस्तोदय तथा (यादृशा) जिस प्रकार के (उत्पाता) उत्पात (उक्ता) कहे गये हैं (यादृशा) उनका वर्णन भी वैसा ही करेंगे। भावार्थ-सौ केतुओं का वर्णन अलग-अलग कहूँगा, ग्रहोंके अस्तोदय ॥४॥
अन्यस्मिन् केतुभवने यदा केतुश्च दृश्यते।
तदाजनपदव्यूहः प्रोक्तान् देशान् स हिंसति॥५॥
(यदा) जब (अन्यस्मिन् केतुभवने) अन्य केतु भवन में (केतुश्च दृश्यते) केतु दिखाई पड़े तो (तदा) तब (जनपद व्यूहः) जनता (प्रोक्तान) कहे गये (देशान् स हिंसति) देशों की हिंसा करती हैं।
भावार्थ-जब अन्य केतु भवन में केतु दिखाई पड़े तो जनता कहे गये देशों का नाश करती है।५॥
एवं दक्षिणतो विन्द्यादपरेणोत्तरेण च।
कृत्तिकादियमान्तेषु नक्षत्रेषु यथाक्रमम्॥६॥ (एवं) इस प्रकार (कृत्तिकादियमान्तेषु नक्षत्रेषु) कृत्तिकादि नक्षत्रसे भरणी तक (दक्षिणतो अपरेणोत्तरेण च) दक्षिण पश्चिम और उत्तर इन दिशाओं में नक्षत्रों को (यथा) क्रमश: समझ लेना चाहिये।
भावार्थ----इस प्रकार कृत्तिकादि नक्षत्रों से भरणी तक दक्षिण पश्चिम और उत्तर इन दिशाओं के नक्षत्रों को क्रमशः समझ लेना चाहिये॥६॥
धूमः क्षुद्रश्च यो ज्ञेयः केतुरङ्गारकोऽग्निपः ।
प्राण संत्रासयत्राणी स प्राणी संशयी तथा॥७॥ (केतुरङ्गारकोऽग्निपः) केतु अंगारक, और राहु (धूप्रः क्षुद्रश्च यो ज्ञेयः) धूम्रवर्ण और शूद्र दिखलाई पड़े तो (प्राण संत्रासयत्राणी) यात्री के प्राण संकट में पड़ते है (सप्राणी संशयी तथा) और जीव संशय में पड़ जाते हैं।