Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-जिसकी शिखा विषाण के समान हो वह विषाणी केतु होता है, तथा भयसे रूक्ष और नष्ट होता हुआ और उसको क्षिलिका शिखा केतु कहते हैं॥१६ 11
शिखाश्चतम्रो ग्रीबार्थ कबन्धस्य विधीयते।
एकरश्मिः प्रदीप्तस्तु स केतुर्दीप्त उच्यते॥१७॥ (ग्रीवाध) जिसकी आधी गर्दन हो (शिखाश्चतस्रो) शिखा चारों तरफ फैली हो (कबन्धस्य विधीयते) वह कबन्ध नामका केतु है (एकरश्मिः प्रदीप्तस्तु) जो एक रश्मि वाला प्रदीप्त केतु है (स केतु र्दीप्त उच्यते) व केतु दीप्त कहलाता
भावार्थ-जिसकी आधी गर्दन हो शिखा चारों तरफ हो वह कबन्ध केतु कहलाता है, जो एक रश्मि वाला है प्रदीप्त है उसको दीप्त केतु कहते हैं ।। १७॥
शिखा मण्डलवद् यस्य केतुर्मण्डलीस्मृतः ।
मयूरपक्षीविज्ञेयो . हसनः प्रभयाऽल्पया॥१८॥ (यस्य) जिस केतु की (शिखामण्डलवद) मण्डल के समान हो (स केतुमण्डलीस्मृतः) उसको मण्डली केतु कहते है, और जो (प्रभयाऽल्पया हसन:) अल्प कान्ति वाला हो (मयूरपक्षीविज्ञेयो) उसको मयूर पक्षी कहा जाता है।
भावार्थ-शिखा मण्डल वाला केतु मण्डली केतु कहा जाता है, और जो अल्पकान्ति वाला केतु है उसे मयूर पक्षी केतु कहते हैं॥१८॥
श्वेतः सुभिक्ष दो ज्ञेयः सौम्यः शुक्लः सुभार्थिषु।
कृष्णादिषु च वर्णेषु चातुर्वण्य विभावयेत् ॥१९॥ (श्वेत: सुभिक्षदोज्ञेय:) श्वेत वर्ण का केतु सुभिक्ष देने वाला है (सौम्यः शुक्ल: सुभार्थिषु) सुन्दर और शुक्ल वर्ण का केतु शुभ फल देता है (कृष्णादिषु च वर्णेषु) क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि वर्गों में विभाजित करना चाहिये।
भावार्थ-श्वेत केतु सुभिक्ष करन वाला है। सौम्य और शुक्ल वर्ण का केतु शुभ फल देने वाला समझना चाहिये, काला, लाल, पीला, सफेद वर्णों का केतु क्रमश: ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्रों का शुभाशुभ करने वाला है।। ११ ।।