Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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निश्चल: सुप्रभः कान्तो यदा निर्याति चन्द्रमाः।
राज्ञां विजय लाभाय तदा शेयः शिवङ्करः॥५५॥ (यदा) जब (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (निश्चलः) निश्चल होकर (सुप्रभःकान्तो) सुप्रभावाला हो कान्तिमान होकर (निर्याति) निकलता है तो (राज्ञां विजय लाभाय तदा) तब राजाओं को विजय लाभ होता है (शिवकर: ज्ञेयः) राष्ट्र में शान्ति होती
भावार्थ-जब चन्द्रमा निश्चल होकर सुप्रभावाला कान्तिमान होकर घूमे तो समझो राजाको विजय मिलेगी, और देश में सर्वत्र शान्ति होगी॥५५ ।।
एतान्येव तु लिङ्गानि चन्द्रे ज्ञेयानि धीमता।
कृष्णपक्षे यदा चन्द्रः शुभो वा यदि वाऽशुभः॥५६॥ (एतान्येव तु लिगानि) उपर्युक्त चिह्नों के (चन्द्रे धीमता ज्ञेयानि) चन्द्र बुद्धिमान चन्द्रमा में ग्रहण करता है (कृष्णपक्षे यदा चन्द्रः) जब कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा को ग्रहण लगता है तो (शुभो वा यदि वाऽशुभः) शुभ व अशुभ होता है।
भावार्थ-उपर्युक्त चिह्नों से युक्त चन्द्रमा का ग्रहण होता है, और कृष्णपक्ष में हो तो बुद्धिमान उसी के अनुसार शुभाशुभ को जाने।। ५६ ।।
उत्पाताश्चनिमित्तानि शकुना लक्षणानि च।
पर्वकाले यदा सन्ति तदा राहोर्बुवागमः ॥५७॥ (यदा) जब (पर्वकाले) पूर्वकाल में (उत्पाताश्च) उत्पात दिखे उस रूप (निमित्तानि) निमित्त हो (शकुनालक्षणानि च) शकुन रूप लक्षण दिखे तो (तदा) तब (राहोर्बुवागम्) समझो राहु का निश्चित ही आगमन होने वाला है।
भावार्थ-जब पूर्वकाल में उत्पात दिखे अन्य रूप निमित्त हो शकुन न हो लक्षण हो तब राहु का निश्चय से आगमन होता हैं॥५७॥
रक्तोराहुः शशीसूर्योहन्युः क्षत्रान् सितोद्विजान्।
पीतोवैश्यान् कृष्णः शूद्रान् द्विवर्णांस्तु जिघांसति ॥५॥ (रक्तोराहुः शशीसूर्यो) यदि लाल वर्ण का राहु और चन्द्रमा हो तो (क्षत्रान्